जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने फर्जी गन लाइसेंस मामले में दर्ज अतिरिक्त FIRs को रद्द करने की मांग करने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया है और राजौरी जिले में दर्ज दो पुराने मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) को जांच सौंपने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार चाहें तो इन सभी FIRs की जांच को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) या केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसे किसी विशेष जांच एजेंसी को सौंप सकती है।
न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल ने 11 जुलाई को दिए आदेश में कहा कि याचिकाओं में कोई मेरिट नहीं है। याचिकाकर्ताओं — जिनमें कुछ सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं — ने यह दलील दी थी कि पहले ही जनिपुर थाना, जम्मू में एक FIR दर्ज है, इसलिए अन्य FIRs को रद्द किया जाए। लेकिन कोर्ट ने वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता मोनिका कोहली की दलील से सहमति जताई, जिन्होंने याचिकाओं का विरोध किया।
फर्जी गन लाइसेंस घोटाले की शुरुआत 7 फरवरी 2011 को हुई थी, जब जम्मू के जनिपुर थाना क्षेत्र में दो व्यक्तियों को 12 बोर की बंदूक के साथ पकड़ा गया था। उनके पास मौजूद हथियार लाइसेंस सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM), मेंढर (पुंछ) द्वारा जारी किए गए थे, लेकिन उनमें गलत पते दर्ज थे। इसके बाद जांच में पता चला कि राजौरी के एडीएम कार्यालय और मेंढर के SDM कार्यालय से फर्जी गन लाइसेंस जारी किए गए थे।

SIT की जांच के आधार पर 2011 में राजौरी पुलिस स्टेशन में 216 लाइसेंस और मेंढर पुलिस स्टेशन में 179 लाइसेंस से संबंधित दो FIR दर्ज की गईं। इसके अलावा, 2012 और 2015 में राजौरी जिले के कंडी और थानामंडी थानों में दो और FIR दर्ज की गईं।
कोर्ट ने कहा कि कंडी और थानामंडी थानों में दर्ज FIRs की जांच पहले से गठित SIT द्वारा की जानी चाहिए। न्यायालय ने जम्मू ज़ोन के पुलिस महानिरीक्षक (IGP) को निर्देश दिया कि वे इन FIRs की जांच SIT को सौंपें और पूरी प्रक्रिया की निगरानी करें। साथ ही निर्देश दिया कि जांच यथाशीघ्र पूरी कर अंतिम रिपोर्ट सक्षम अदालत में दाखिल की जाए।
इस आदेश के साथ हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि फर्जी दस्तावेजों के मामलों में गंभीरता से कार्रवाई की जाएगी, भले ही वे कितने भी पुराने क्यों न हों।