भोजशाला-कमल मौला मस्जिद परिसर में पूजा के अधिकार के लिए जैन समुदाय ने याचिका दायर की

दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता सलेक चंद जैन ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर पीठ में एक रिट याचिका दायर की है, जिसमें धार में विवादित भोजशाला-कमल मौला मस्जिद परिसर में जैन समुदाय के लिए पूजा के अधिकार की मांग की गई है। 29 जून को दायर की गई याचिका में दावा किया गया है कि इस स्थल पर ऐतिहासिक रूप से एक जैन गुरुकुल और देवी अंबिका को समर्पित मंदिर था।

यह कानूनी याचिका भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा 11वीं सदी के परिसर पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने की तैयारी के बीच सामने आई है, जैसा कि हाईकोर्ट द्वारा अनिवार्य किया गया है। विस्तृत विवरण में न्यायालय की रुचि 11 मार्च को स्थल के ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ के निर्देश के बाद आई है, जो ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ की याचिका से प्रेरित है, जिसका तर्क है कि परिसर देवी वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर है। इसके विपरीत, मुस्लिम समुदाय इस स्थल को कमल मौला मस्जिद के रूप में मान्यता देता है।

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सलेक चंद जैन के वकील मनोहर सिंह चौहान ने पुष्टि की कि हाईकोर्ट में इस सप्ताह मामले की सुनवाई होने की उम्मीद है। याचिका में जैन समुदाय के लिए परिसर के महत्व पर जोर दिया गया है, जिसमें एक शैक्षणिक और धार्मिक केंद्र के रूप में इसकी पिछली भूमिका का विवरण दिया गया है, जहां भिक्षु और विद्वान व्यापक रूप से ग्रंथों का अनुवाद करते थे।

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विवादास्पद रूप से, याचिका में देवी वाग्देवी की कथित मूर्ति की पहचान को भी चुनौती दी गई है, जिसमें दावा किया गया है कि यह जैन देवता अंबिका की मूर्ति है। याचिका के अनुसार, यह मूर्ति धार के राजा भोज ने 1034 ई. में स्थापित की थी और वर्तमान में लंदन के एक संग्रहालय में रखी गई है। याचिका में भोजशाला परिसर में मूर्ति को उसके मूल स्थान पर वापस लाने और उसे पुनः स्थापित करने की मांग की गई है।

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इसके अलावा, याचिका में अनुरोध किया गया है कि केंद्र सरकार परिसर और उससे जुड़ी कलाकृतियों की आयु का पता लगाने के लिए रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक का उपयोग करे, जिससे संभावित रूप से साइट की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वंशावली पर प्रकाश डाला जा सके।

एएसआई का सर्वेक्षण 22 मार्च को शुरू हुआ था और हाल ही में समाप्त हुआ है तथा इसकी पूरी रिपोर्ट 2 जुलाई तक अदालत में पेश की जानी है।

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