एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52-ए का पालन न होने के बावजूद, यदि साक्ष्य विश्वास पैदा करते हैं तो कोर्ट दोषी ठहरा सकती है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट, बिलासपुर ने स्पष्ट किया है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेस एक्ट, 1985 (NDPS Act) की धारा 52-A के तहत निर्धारित प्रक्रिया में यदि कोई अनुपालन नहीं हुआ हो, तब भी अगर अभियोजन के साक्ष्य न्यायालय को विश्वास दिलाते हैं कि आरोपी के कब्जे से मादक पदार्थ बरामद हुआ, तो केवल प्रक्रिया की खामी के आधार पर आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने 14 जुलाई 2025 को यह फैसला सुनाया, जब वह क्रिमिनल अपील क्रमांक 383/2024 (मो. कालूत मंसुली बनाम छत्तीसगढ़ राज्य) और क्रिमिनल अपील क्रमांक 358/2024 (महेश कुमार पासवान बनाम छत्तीसगढ़ राज्य) पर सुनवाई कर रही थी। विशेष न्यायाधीश (NDPS एक्ट), महासमुंद द्वारा 11 जनवरी 2024 को सुनाए गए फैसले में दोनों अभिय appellants को 20 वर्ष की कठोर कारावास और ₹2,00,000/- का जुर्माना (जुर्माना न देने पर 1 वर्ष अतिरिक्त सजा) सुनाई गई थी, जिसे अपील में चुनौती दी गई थी।

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मामले की पृष्ठभूमि

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प्रकरण के अनुसार, 10 सितंबर 2020 को थाना कोमाखान के निरीक्षक प्रदीप मिन्ज को सूचना मिली कि उड़ीसा से बिहार गांजा ले जाया जा रहा है। सूचना के आधार पर पुलिस ने टेमरी फॉरेस्ट बैरियर पर ट्रक (WB 41 H 0832) को रोका, जिसमें दो व्यक्ति—मो. कालूत मंसुली और महेश कुमार पासवान—मौजूद थे।

ट्रक से 183 पैकेट्स में भरा कुल 913 किलो गांजा बरामद हुआ, जो 34 बोरियों में छुपा कर रखा गया था। मौके पर ही 100-100 ग्राम के दो सैंपल लिए गए और शेष सामग्री को जब्त कर लिया गया। फॉरेंसिक जांच में इसकी पुष्टि गांजा के रूप में हुई। आरोपियों को मौके पर गिरफ्तार कर उनके खिलाफ धारा 20(b)(ii)(C), NDPS एक्ट के तहत चार्जशीट दायर की गई।

अपीलकर्ताओं की दलीलें

अधिवक्ता ने अदालत में तर्क दिया कि:

  • अभियोजन पक्ष द्वारा धारा 42, 50, 52, 52-A, 55 और 57 का पालन नहीं किया गया;
  • अभियोजन साक्ष्यों में विरोधाभास और कमियां थीं;
  • सेंपलिंग प्रक्रिया में सेंट्रल गवर्नमेंट स्टैंडिंग ऑर्डर 1/89 का पालन नहीं हुआ क्योंकि पहले सभी गांजे को मिलाकर एकरूप (homogenize) किया गया और फिर सेंपल लिया गया, जो गलत प्रक्रिया है।
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राज्य का पक्ष

राज्य के अधिवक्ता ने तर्क रखा कि अभियोजन ने सभी अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किया, गांजा आरोपियों के कब्जे से बरामद हुआ और ट्रायल कोर्ट ने विश्वसनीय साक्ष्यों के आधार पर उचित निर्णय दिया।

अदालत का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भारत आंबाले बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (CRA No. 250/2025, 6 जनवरी 2025) फैसले का हवाला देते हुए कहा:

“भले ही NDPS एक्ट की धारा 52-A में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन न हुआ हो, यदि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत अन्य साक्ष्य न्यायालय को बरामदगी और कब्जे को लेकर संतुष्ट करते हैं, तो न्यायालय केवल प्रक्रियागत खामियों के आधार पर अभियुक्त को बरी नहीं करेगा।”

कोर्ट ने माना कि स्वतंत्र गवाह (PW1, PW2) और तुलादंडकार (PW12) अपने बयान से मुकर गए, लेकिन जांच अधिकारी (PW14) का बयान सुसंगत और रिकॉर्ड्स से पुष्ट था।

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साथ ही, कोर्ट ने कहा कि घटना स्थल सार्वजनिक सड़क पर था, इसलिए धारा 42 की आवश्यकता नहीं थी और धारा 43 के तहत की गई कार्यवाही विधिसंगत थी। धारा 50, जो केवल व्यक्ति की तलाशी के मामलों में लागू होती है, वाहन की तलाशी पर लागू नहीं होती।

अंतिम निर्णय

हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन ने गांजा की बरामदगी और कब्जे का पर्याप्त प्रमाण दिया है, और केवल प्रक्रियागत त्रुटियों के आधार पर अभियुक्तों को राहत नहीं दी जा सकती।

इसलिए, दोनों अपीलें खारिज कर दी गईं और विशेष न्यायाधीश, महासमुंद द्वारा सुनाया गया 20 वर्ष की कठोर कारावास और ₹2,00,000/- जुर्माने का फैसला बरकरार रखा गया।

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