सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मोटर दुर्घटना मुआवज़ा दावों में पंजीकृत स्वामी तब तक उत्तरदायी रहेगा जब तक स्वामित्व का औपचारिक हस्तांतरण पूरा नहीं हो जाता, और इस अवधि की ज़िम्मेदारी बीमा कंपनी को वहन करनी होगी, भले ही वाहन बिक चुका हो या उसका कब्ज़ा हस्तांतरित हो गया हो।
न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने बृज बिहारी गुप्ता द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार करते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बीमा कंपनी को ज़िम्मेदारी से मुक्त कर पूरा बोझ उस अपीलकर्ता पर डाल दिया गया था जो दुर्घटना में शामिल मालवाहक वाहन चला रहा था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला एक मोटर दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें मृत्यु और चोट के कई दावे सामने आए। मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) ने 11 दावा याचिकाओं में मुआवज़ा देते हुए पंजीकृत स्वामी, चालक (अपीलकर्ता) और बीमा कंपनी को संयुक्त रूप से उत्तरदायी ठहराया।

बीमा कंपनी ने केवल तीन अवॉर्ड्स को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि पीड़ित लोग अनुग्रह यात्री (gratuitous passengers) थे और अपीलकर्ता ने बिक्री समझौते के तहत वाहन का कब्ज़ा ले लिया था। उच्च न्यायालय ने यह तर्क मानते हुए बीमा कंपनी को उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया, जबकि दो दावों में मुआवज़ा बढ़ाया और एक दावा खारिज कर दिया। अपीलकर्ता की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट में पक्षकारों के तर्क
अपीलकर्ता ने कहा कि मृतक और घायल मामूली फेरीवाले थे, जो अपने माल के साथ यात्रा कर रहे थे, इसलिए मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत वे ‘माल के स्वामी’ की श्रेणी में आते हैं, न कि अनुग्रह यात्री की। उन्होंने यह भी कहा कि वाहन का कानूनी स्वामित्व उनके नाम हस्तांतरित नहीं हुआ था और बीमा कंपनी ने केवल चुनिंदा तीन अवॉर्ड्स को चुनौती दी। उन्होंने नवीन कुमार बनाम विजय कुमार (2018) 3 SCC 1 का हवाला दिया, जिसमें पंजीकृत स्वामी पर उत्तरदायित्व तय किया गया है।
दावेदारों की ओर से अमिकस क्यूरी ने अपीलकर्ता का समर्थन किया, जबकि बीमा कंपनी ने कहा कि मृतक व घायल अनुग्रह यात्री थे और दुर्घटना के समय अपीलकर्ता ही वाहन का वास्तविक स्वामी था।
न्यायालय का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि साक्ष्य से स्पष्ट है कि पीड़ित अपने माल के साथ यात्रा कर रहे थे — एक मछली बेचने वाला और दूसरा सब्जी विक्रेता। बीमा कंपनी के गवाह ने यह स्वीकार किया कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि वे माल के साथ यात्रा कर रहे थे या नहीं। अधिकरण ने स्पष्ट कहा था —
“…माल वाहक यान में अपनी सामान की सुरक्षा के लिए बैठे व्यक्ति को अनुग्रह यात्री नहीं माना जा सकता।”
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्यात्मक निष्कर्ष को बिना किसी ठोस आधार के पलटा। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 147(1)(b)(i) का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि बीमा पॉलिसी में माल के स्वामी या उनके अधिकृत प्रतिनिधि को माल के साथ यात्रा करने पर कवर किया जाता है।
स्वामित्व पर, अदालत ने पाया कि पंजीकृत स्वामी और अपीलकर्ता के बीच हुए समझौते में केवल कब्ज़ा दिया गया था, स्वामित्व पूरी रकम चुकाने और पंजीकरण बदलने के बाद ही हस्तांतरित होना था। दुर्घटना के समय वाहन का पंजीकरण मूल स्वामी के नाम था और धारा 50 के तहत हस्तांतरण की कोई सूचना भी नहीं दी गई थी।
नवीन कुमार मामले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा —
“भुगतान की जिम्मेदारी पूरी तरह पंजीकृत स्वामी पर होती है, भले ही कई बार हस्तांतरण हो चुका हो, और इसे बीमा कंपनी द्वारा वहन किया जाना चाहिए।”
अदालत ने यह भी नोट किया कि बीमा कंपनी ने केवल तीन अवॉर्ड्स को चुनिंदा तरीके से चुनौती देने के आरोप का खंडन नहीं किया।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने —
- सिविल अपील संख्या 6338-6339/2024 और 6340/2024 को स्वीकार किया।
- निर्देश दिया कि बीमा कंपनी इन अपीलों में पारित अवॉर्ड्स का भुगतान करे।
- नोट किया कि दो संबंधित अपीलें लोक अदालत में निपट चुकी हैं।
- रिकॉर्ड किया कि अधिकरण का अवॉर्ड दावा याचिका की तारीख से 12% ब्याज के साथ था, जबकि उच्च न्यायालय द्वारा बढ़ाई गई राशि पर उसी तारीख से 6% ब्याज लागू होगा।
लंबित आवेदन भी निस्तारित कर दिए गए।