तीसरे पक्ष के विरुद्ध ‘एग्रीमेंट टू सेल’ के आधार पर स्थायी निषेधाज्ञा का दावा सुनवाई योग्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘एग्रीमेंट टू सेल’ के आधार पर किसी संपत्ति पर कब्जा रखने वाले तीसरे पक्ष के विरुद्ध निषेधाज्ञा (injunction) का दावा स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने आरबीएएनएमएस एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए उनके विरुद्ध दायर दीवानी वाद को खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि ऐसा विक्रय अनुबंध जो केवल समझौते के स्तर पर हो, वह उन व्यक्तियों पर लागू नहीं हो सकता जो उस अनुबंध के पक्षकार नहीं हैं।

पृष्ठभूमि

यह मामला बेंगलुरु स्थित XIII एडिशनल सिटी सिविल एंड सेशन्स जज के समक्ष बी. गुणशेखर व एक अन्य द्वारा दायर एक स्थायी निषेधाज्ञा के वाद से संबंधित था, जिसमें उन्होंने आरबीएएनएमएस एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन के विरुद्ध दावा किया था। वादकर्ताओं का आधार 10 अप्रैल 2018 का एक ‘एग्रीमेंट टू सेल’ था, जो उन्होंने कुछ निजी व्यक्तियों (जो इस वाद में पक्षकार नहीं थे) के साथ ₹9 करोड़ की बिक्री राशि के लिए किया था, जिसमें ₹75 लाख नकद में भुगतान किया गया बताया गया।

अपीलकर्ता ट्रस्ट, जिसकी स्थापना 1873 में हुई थी और जो 1905 से विवादित संपत्ति के कब्जे में था, ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के आदेश VII नियम 11(a) और (d) के तहत वाद को खारिज करने की मांग की थी। ट्रायल कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट दोनों ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके विरुद्ध यह अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई।

पक्षकारों के तर्क

अपीलकर्ता (RBANMS ट्रस्ट) की ओर से:

  • ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 54 के तहत, ‘एग्रीमेंट टू सेल’ से संपत्ति में कोई विधिक स्वत्व उत्पन्न नहीं होता।
  • वादकर्ताओं और ट्रस्ट के बीच कोई अनुबंधात्मक संबंध नहीं था, अतः उन्हें निषेधाज्ञा मांगने का अधिकार (locus standi) नहीं था।
  • यह वाद केवल एक चैरिटेबल संस्था को परेशान करने के लिए दायर किया गया एक फर्जी व दुरुपयोग वाला वाद था।
  • ₹75 लाख की नकद भुगतान की बात न केवल संदेहास्पद है, बल्कि यह इनकम टैक्स एक्ट की धारा 269ST का उल्लंघन भी है।

वादकर्ताओं की ओर से:

  • आदेश VII नियम 11 के तहत वाद खारिज करते समय केवल वाद पत्र की बातों को देखा जाना चाहिए।
  • ‘एग्रीमेंट टू सेल’ से भले ही स्वत्व न उत्पन्न हो, परंतु इससे उनकी स्वार्थ रक्षा की वैध आधारशिला बनती है।
  • वाद पत्र की अस्वीकृति से उनका न्यायिक सुनवाई का अधिकार समय से पूर्व समाप्त हो जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण

कोर्ट ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VII नियम 11 के तहत कोई भी ऐसा वाद, जिसमें कोई कारण नहीं बनता या जो विधि द्वारा प्रतिबंधित है, उसे प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज किया जाना चाहिए।

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कोर्ट ने कहा:

“विक्रय हेतु केवल एक समझौता, क्रेता को यह अधिकार नहीं देता कि वह किसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध, जो स्वामी हो या कब्जे में हो या स्वामी होने का दावा करता हो, वाद दायर कर सके।”

साथ ही कहा:

“चूंकि प्रतिवादी किसी भी अधिकार से वंचित नहीं हुए हैं, केवल समझौते के कारण, इसलिए वे यह वाद कायम नहीं रख सकते, क्योंकि उनके पास इसका कोई विधिक आधार (locus) नहीं है।”

कोर्ट ने यह भी कहा:

“वादीगण स्वयं यह स्वीकार कर रहे हैं कि अपीलकर्ता संस्था 1905 से कब्जे में है, और उनके पक्ष में कोई रजिस्टर्ड बिक्री विलेख भी नहीं है।”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई दावा बनता है, तो वह केवल विक्रेताओं के विरुद्ध विशिष्ट निष्पादन (specific performance) हेतु वाद दायर करके किया जा सकता है।

नकद लेन-देन पर दिशा-निर्देश

कोर्ट ने ₹75 लाख के कथित नकद भुगतान को संदिग्ध मानते हुए इनकम टैक्स एक्ट की धारा 269ST के उल्लंघन की आशंका जताई और व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए। पैरा 18.1 में दिए गए निर्देश निम्नलिखित हैं:

  1. कोर्ट को अनिवार्य रूप से उस क्षेत्र के आयकर विभाग को सूचित करना होगा जब भी किसी वाद में ₹2 लाख या उससे अधिक नकद भुगतान का दावा किया जाए।
  2. आयकर विभाग को ऐसी सूचनाएं मिलने पर वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार उचित कार्रवाई करनी होगी।
  3. सब-रजिस्ट्रार को ₹2 लाख से अधिक की संपत्ति रजिस्ट्री में नकद भुगतान की जानकारी संबंधित आयकर प्राधिकरण को देनी होगी।
  4. रजिस्ट्रेशन अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी यदि वे ऐसे नकद लेनदेन की रिपोर्टिंग में विफल रहते हैं।
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अंतिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने निम्न आदेश पारित किए:

  • कर्नाटक हाई कोर्ट का 2 जून 2022 का आदेश व सिटी सिविल कोर्ट, बेंगलुरु का 11 जून 2021 का आदेश रद्द किया गया।
  • आदेश VII नियम 11 (a) और (d) के तहत याचिका स्वीकार की गई।
  • वाद संख्या O.S. No. 25968 of 2018 को खारिज किया गया।
  • इस निर्णय की प्रतिलिपि सभी उच्च न्यायालयों, राज्यों के मुख्य सचिवों और प्रधान मुख्य आयकर आयुक्तों को भेजने का निर्देश दिया गया।

प्रकरण विवरण:
Civil Appeal No. 5200 of 2025 (SLP (C) No. 13679 of 2022 से उत्पन्न)
मामला: The Correspondence, RBANMS Educational Institution बनाम बी. गुणशेखर एवं अन्य

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