अमान्य विवाह से उत्पन्न बच्चे पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति दोनों के उत्तराधिकारी हो सकते हैं: उड़ीसा हाईकोर्ट

हिंदू कानून के अंतर्गत उत्तराधिकार अधिकारों से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय में, उड़ीसा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अमान्य (void) विवाहों से जन्मे बच्चों को अपने पिता की पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित संपत्ति दोनों में उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त है, बशर्ते कि पैतृक संपत्ति में उनका हिस्सा उतना ही होगा जितना उनके पिता को एक काल्पनिक बंटवारे (notional partition) के तहत प्राप्त होता।

अदालत ने फैमिली कोर्ट के उस निर्णय को आंशिक रूप से संशोधित करते हुए बरकरार रखा, जिसमें श्रीमती अनुसया मोहंती को स्वर्गीय कैलाश चंद्र मोहंती की वैध पत्नी और कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील MATA No. 04 of 2024, फैमिली कोर्ट, भुवनेश्वर द्वारा C.P. No. 576 of 2017 में पारित निर्णय से उत्पन्न हुई। फैमिली कोर्ट ने उस निर्णय में अनुसया मोहंती को स्वर्गीय कैलाश चंद्र मोहंती की वैध पत्नी और कानूनी वारिस घोषित किया था।

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प्रतिवादी (अनुसया) ने दावा किया कि उन्होंने 5 जून 1966 को हिंदू रीति-रिवाज से कैलाश चंद्र मोहंती से विवाह किया था और उनके दो पुत्र हैं।

अपीलकर्ता, श्रीमती संध्या रानी साहू @ मोहंती, ने इस घोषणा को चुनौती दी और कहा कि वह भी मृतक के साथ संबंध में थीं और उनके बच्चों को भी उत्तराधिकार का अधिकार है। उन्होंने कहा कि फैमिली कोर्ट ने उनके बच्चों के अधिकारों को मान्यता नहीं दी और यह मुकदमा फैमिली कोर्ट में नहीं बल्कि सिविल कोर्ट में विशेष अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 34 के अंतर्गत दायर किया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह याचिका समयसीमा के बाहर दायर की गई थी।

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अपीलकर्ता की ओर से प्रस्तुत दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री बी. बाग ने अपीलकर्ता की ओर से निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए:

  • फैमिली कोर्ट को विवाह की वैधता घोषित करने का अधिकार परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 के तहत प्राप्त नहीं है।
  • यह मुकदमा सीमांकन अधिनियम, 1963 की अनुच्छेद 58 के अंतर्गत समयसीमा से बाहर है, क्योंकि यह याचिका स्वर्गीय कैलाश चंद्र मोहंती की मृत्यु के तीन वर्षों से अधिक समय के बाद दायर की गई।
  • फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अंतर्गत उनके बच्चों के वैधानिक अधिकारों को मान्यता नहीं दी।

उन्होंने Samar Kumar Roy v. Jharna Bera (2008) 1 SCC 1 और Hanamanthappa v. Chandrashekharappa (1997) 9 SCC 688 जैसे निर्णयों पर भरोसा किया।

प्रतिवादी की ओर से प्रस्तुत दलीलें

प्रतिवादी के अधिवक्ता श्री एस. एस. भुइयां ने फैमिली कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए तर्क दिया:

  • याचिका पूरी तरह धारा 7(1)(b), परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 के अंतर्गत फैमिली कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आती है।
  • याचिका समयसीमा से बाहर नहीं थी, क्योंकि सिविल कोर्ट में पूर्व में की गई कार्यवाही और क्षेत्राधिकार पर आपत्ति में व्यतीत समय को सीमांकन अधिनियम की धारा 14(2) के अंतर्गत छूट दी जानी चाहिए।
  • अपीलकर्ता के बच्चों की वैधता पर सवाल उठाने से प्रतिवादी की वैध पत्नी के रूप में स्थिति अथवा उनके उत्तराधिकार के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
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उन्होंने Balram Yadav v. Fulmaniya Yadav, AIR 2016 SC 2161 और Hasina Bano v. Mohd. Ehsan, 2024 SCC OnLine AI 5194 जैसे निर्णयों का हवाला दिया।

कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

क्षेत्राधिकार (Jurisdiction):

न्यायमूर्ति चित्तरणजन दाश और न्यायमूर्ति बी. पी. राउत्रे की खंडपीठ ने माना कि फैमिली कोर्ट को विवाह की वैधता तथा वैवाहिक स्थिति घोषित करने का अधिकार प्राप्त है, जैसा कि धारा 7(1)(b), परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 में स्पष्ट किया गया है।

फैमिली कोर्ट को प्रतिवादी की वैवाहिक स्थिति की घोषणा हेतु याचिका स्वीकार करने का वैध अधिकार प्राप्त था।

सीमांकन (Limitation):

अदालत ने यह निर्णय दिया कि याचिका समयसीमा के अंतर्गत है, क्योंकि सिविल कोर्ट में पहले दायर याचिका और क्षेत्राधिकार की चुनौती में व्यतीत समय को सीमांकन अधिनियम की धारा 14(2) के अंतर्गत छूट दी जा सकती है। साथ ही, वैवाहिक स्थिति से जुड़ा विवाद निरंतर कारण (continuing cause of action) की श्रेणी में आता है।

अमान्य विवाह से जन्मे बच्चों के उत्तराधिकार अधिकार:

इस मुद्दे पर, अदालत ने माना कि फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता के बच्चों के अधिकार को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया था, जबकि उन्हें उत्तराधिकार का अधिकार मिलना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट के Revanasiddappa v. Mallikarjun निर्णय पर भरोसा करते हुए हाईकोर्ट ने कहा:

अपीलकर्ता और स्वर्गीय कैलाश चंद्र मोहंती से उत्पन्न संतानें उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति की उत्तराधिकारी हैं। इसके अतिरिक्त, यदि मृतक पिता मिताक्षरा सहभाजक थे, तो उन संतानों को पैतृक संपत्ति में भी उतना हिस्सा मिलेगा जितना उनके पिता को काल्पनिक बंटवारे में मिलता।

इसी आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को आंशिक रूप से संशोधित किया।

हाईकोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा, परंतु उसमें यह संशोधन किया:

दिनांक 12.12.2023 को पारित फैमिली कोर्ट, भुवनेश्वर के निर्णय को इस हद तक संशोधित किया जाता है कि अपीलकर्ता के बच्चों को स्वर्गीय कैलाश चंद्र मोहंती की स्वयं अर्जित संपत्ति और उनकी पैतृक संपत्ति में वह हिस्सा, जो उन्हें एक काल्पनिक बंटवारे में प्राप्त होता, का अधिकार है, जैसा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6(3) में वर्णित है।”

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