इंदौर की एक सत्र न्यायालय ने 70 वर्षीय सेवानिवृत्त सेना हवलदार और उसके बेटे को उनकी बहू की कथित दहेज मृत्यु और आत्महत्या के लिए उकसाने के सभी आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने साक्ष्यों की कमी को आधार बनाते हुए यह फैसला सुनाया।
अपर सत्र न्यायाधीश अनीता सिंह ने 6 मई को पारित अपने आदेश में श्रीराम राजपूत और उनके बेटे संजीव कुमार राजपूत (45) को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 498-ए (पति या ससुराल पक्ष द्वारा क्रूरता) के तहत दर्ज आरोपों से मुक्त कर दिया।
यह मामला संजीव कुमार की पत्नी संगीता की आत्महत्या से जुड़ा था, जो 24 सितंबर 2019 को अपने घर में फांसी पर लटकी पाई गई थीं। वर्ष 2006 में हुई शादी के बाद, संगीता की मौत को घरेलू विवाद और कथित दहेज मांग से जोड़ा गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, पिता-पुत्र ने संगीता से ₹1 लाख रुपये दहेज की मांग की थी और पूरी रकम न मिलने पर उसे प्रताड़ित किया गया। हालांकि, बचाव पक्ष के वकील अमित सिंह सिसोदिया ने तर्क दिया कि अभियोजन छह गवाहों को पेश करने के बावजूद आरोपों को प्रमाणित करने में असफल रहा।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि घरेलू कलह की मौजूदगी मात्र आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायाधीश ने कहा कि केवल वैवाहिक विवाद का आरोप, ठोस और प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में, किसी को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता।
न्यायालय ने टिप्पणी की, “जब तक आत्महत्या और आरोपियों के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करने वाले ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए जाते, तब तक अभियोजन अपने साक्ष्य का भार पूरा नहीं कर पाता।”
इस निर्णय के बाद, श्रीराम राजपूत और संजीव कुमार राजपूत को मामले के सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया।