सोशल मीडिया पर अश्लील तस्वीरों का प्रसार ज़िंदगियां बर्बाद कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला की अश्लील तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रसारित करने के आरोप में गिरफ्तार आरोपी रामदेव की जमानत याचिका खारिज कर दी है। न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा, “सोशल मीडिया के सार्वजनिक मंचों पर किसी व्यक्ति की अश्लील तस्वीरों का प्रसार ज़िंदगियां बर्बाद कर सकता है। यह एक कड़वी सामाजिक सच्चाई है।”

यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकल पीठ ने अपराध संख्या 5/2025, थाना उट्रांव, जनपद प्रयागराज से संबंधित अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत दायर जमानत याचिका संख्या 19176/2025 पर पारित किया। मामले में भारतीय दंड संहिता (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023) की धारा 74, 352, 351(2), 64(1) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67A के अंतर्गत अपराध दर्ज किया गया है।

मामले की पृष्ठभूमि

आवेदक रामदेव 9 जनवरी 2025 से न्यायिक हिरासत में है। उसकी जमानत याचिका पहले 23 अप्रैल 2025 को ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज की जा चुकी थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, रामदेव ने पीड़िता की अश्लील तस्वीरें व्हाट्सएप के माध्यम से प्रसारित की थीं। इनमें से कुछ तस्वीरें बरामद कर फोरेंसिक परीक्षण हेतु भेजी गई हैं, जिसकी रिपोर्ट अभी लंबित है।

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पक्षकारों की दलीलें और न्यायालय की टिप्पणी

आवेदक की ओर से अधिवक्ता श्री सत्यं मिश्रा और शैलेन्द्र सिंह उपस्थित हुए, जबकि राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता पेश हुए। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि आवेदक को मुख्य आरोपी के रूप में पहचाना गया है और प्रथम दृष्टया उसके अपराध में संलिप्त होने की प्रबल संभावना है।

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न्यायालय ने अपने आदेश में कहा:

“डिजिटल प्रौद्योगिकी अपराध की प्रकृति को बदल रही है। सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से किसी व्यक्ति की अश्लील तस्वीरों का प्रसार जीवन को नष्ट कर सकता है।”

अदालत ने पाया कि वर्तमान चरण में जमानत का कोई आधार नहीं बनता।

मुकदमे में शीघ्र सुनवाई के निर्देश

न्यायालय ने मुकदमे की शीघ्र सुनवाई पर बल देते हुए ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर ट्रायल समाप्त करने का प्रयास करे। न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 309 का हवाला देते हुए कहा कि विधायिका की मंशा स्पष्ट रूप से त्वरित न्याय प्रदान करने की है।

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न्यायालय के दिशा-निर्देश:

  • जिला जज साप्ताहिक रूप से ट्रायल की प्रगति की रिपोर्ट लें।
  • फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट दो माह के भीतर प्रस्तुत की जाए।
  • गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए धारा 62 और 69 CrPC के अंतर्गत समन जारी किए जाएं।
  • गवाहों की अनुपस्थिति पर कड़े कदम उठाए जाएं और अनावश्यक विलंब करने वाले पक्षकारों/वकीलों पर उपयुक्त मामलों में प्रतिकरात्मक लागत लगाई जाए।
  • प्रयागराज के पुलिस आयुक्त ट्रायल कोर्ट में समन/वारंट के निष्पादन की स्थिति पर हलफनामा प्रस्तुत करें।
  • यदि पुलिस अधिकारी समन के निष्पादन में विफल होते हैं तो संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को तलब किया जा सकता है।
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पूर्व आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश

न्यायालय ने अपने पूर्व आदेश भंवर सिंह @ करमवीर बनाम राज्य (जमानत याचिका संख्या 16871/2023) और जितेंद्र बनाम राज्य (जमानत याचिका संख्या 9126/2023) का भी उल्लेख किया, जिसमें गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करने हेतु पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारियों पर निर्देश जारी किए गए थे।

साथ ही यह भी निर्देश दिया गया कि यदि किसी आरोपी को जमानत पर छोड़ा गया हो और वह ट्रायल में सहयोग न करे या जानबूझकर विलंब करे, तो ट्रायल कोर्ट बिना उच्च न्यायालय की अनुमति के उसका जमानत आदेश निरस्त कर सकता है।

मामला: रामदेव बनाम राज्य उत्तर प्रदेश
मामला संख्या: जमानत याचिका संख्या 19176/2025

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