मौखिक जांच के बिना वेतनवृद्धि रोकना नियमों का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दंड आदेश रद्द किया

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी भूवैज्ञानिक डॉ. योगेन्द्र भदौरिया पर लगाए गए दंडात्मक आदेश (दिनांक 09.09.2024) को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 के नियम 7 का उल्लंघन है। उक्त आदेश के तहत डॉ. भदौरिया की दो वेतनवृद्धियां दो वर्षों के लिए रोक दी गई थीं और एक प्रतिकूल प्रविष्टि (censure) दी गई थी।

यह निर्णय न्यायमूर्ति करुणेश सिंह पवार ने रिट-ए संख्या 10500/2024 में पारित किया, जिसमें याची द्वारा की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने राज्य सरकार को यह भी निर्देश दिया कि याची की पदोन्नति को sealed cover प्रक्रिया के तहत पुनर्विचार किया जाए।

मामला पृष्ठभूमि

डॉ. भदौरिया को 06.01.2022 को निलंबित किया गया था और 08.12.2022 को एकल आरोप वाली चार्जशीट जारी की गई थी। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट को राज्य सरकार ने 01.12.2023 को यह कहते हुए वापस कर दिया कि उचित मौखिक जांच की जानी चाहिए। लेकिन 24.07.2024 को प्रस्तुत नई रिपोर्ट में भी जांच अधिकारी ने चार्जशीट में उल्लिखित किसी भी गवाह को पेश नहीं किया।

याचिकाकर्ता की दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आई.एम. पांडेय के माध्यम से याची ने तर्क दिया कि:

  • पूरी जांच प्रक्रिया नियम 7 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया के विरुद्ध थी क्योंकि इसमें कोई मौखिक साक्ष्य दर्ज नहीं किया गया।
  • दंड आदेश एक आंतरिक कार्यालय रिपोर्ट पर आधारित था जो औपचारिक जांच प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थी।

राज्य पक्ष की दलीलें

राज्य सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि चूंकि मामूली दंड (minor penalty) लगाया गया था, इसलिए मौखिक साक्ष्य की कोई आवश्यकता नहीं थी।

न्यायालय का विश्लेषण

कोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि नियम 7(vii) के तहत यह आवश्यक है कि यदि सरकारी सेवक आरोपों से इनकार करता है, तो जांच अधिकारी को आरोप पत्र में प्रस्तावित गवाहों को बुलाकर याची की उपस्थिति में मौखिक साक्ष्य दर्ज करने होते हैं।

कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा: “जांच के दौरान आरोप पत्र में उल्लिखित किसी भी गवाह को न तो समन किया गया और न ही उनका परीक्षण किया गया, जिससे संपूर्ण प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण हो गई।”

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कोर्ट ने यह भी पाया कि दंड आदेश में जिस आंतरिक कार्यालय रिपोर्ट को आधार बनाया गया, वह प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थी और याची को इसके संबंध में कोई अवसर भी नहीं दिया गया: “अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश में कार्यालय की राय का उपयोग किया गया, जिसके लिए याची को कोई अवसर नहीं दिया गया। यह नियमावली, 1999 के अंतर्गत अनुमन्य नहीं है।”

पदोन्नति का विषय

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जांच लंबित होने के कारण याची की पदोन्नति को sealed cover में रखा गया, जबकि उनके कनिष्ठ अधिकारियों को पदोन्नत कर दिया गया। कोर्ट ने Union of India v. K.V. Jankiraman (1991 AIR 2010) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि याची की पदोन्नति पर विचार न करना उचित नहीं है।

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निर्णय

कोर्ट ने दिनांक 09.09.2024 का दंड आदेश रद्द करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह याची की sealed cover में रखी गई पदोन्नति पर विचार करे और यदि वह उपयुक्त पाए जाएं तो उन्हें उनके कनिष्ठों की पदोन्नति की तिथि से सभी काल्पनिक लाभों सहित पदोन्नत किया जाए। यह कार्य आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने के तीन माह के भीतर पूर्ण किया जाना चाहिए।

प्रकरण विवरण:
डॉ. योगेन्द्र भदौरिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, रिट-ए संख्या 10500/2024, निर्णय दिनांक: 16 अप्रैल 2025

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