इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इमरान खान उर्फ अशोक रत्न बनाम राज्य बनाम अन्य वाद में धारा 377 आईपीसी सहित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यदि पति अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, तो यह धारा 377 आईपीसी के अंतर्गत दंडनीय अपराध है, भले ही दोनों के बीच वैध विवाह हो।
पृष्ठभूमि:
यह मामला एक प्राथमिकी पर आधारित है, जो वादी पत्नी (प्रतिवादी संख्या 2) द्वारा 23 फरवरी 2023 को थाना शिवकुटी, जनपद प्रयागराज में दर्ज कराई गई थी (केस क्राइम नंबर 41/2023)। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 323, 504, 506, 377 तथा दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत आरोप लगाए गए। पुलिस ने 28 जून 2023 को आरोप पत्र दाखिल किया, जिस पर मजिस्ट्रेट ने 10 अगस्त 2023 को संज्ञान लिया।
याची के तर्क:
याची के अधिवक्ता ने निम्नलिखित आधारों पर कार्यवाही रद्द करने की मांग की:
- प्राथमिकी में वर्ष 2019 की घटना का उल्लेख है, जबकि इसे 2023 में दायर किया गया, जो कि अनुचित देरी है।
- पति-पत्नी के बीच धारा 377 आईपीसी के अंतर्गत कोई अपराध नहीं बनता।
- पत्नी द्वारा चिकित्सकीय परीक्षण से इनकार किया गया।
- स्वतंत्र गवाहों ने शिकायतकर्ता के आरोपों की पुष्टि नहीं की।
- शिकायतकर्ता को पहले विवाह की जानकारी थी, और उसने स्वेच्छा से विवाह किया।
प्रतिवादी के तर्क:
पत्नी के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि:
- पुलिस जांच के दौरान दिया गया हलफनामा दबाव में दिया गया था।
- प्राथमिकी व धारा 161 व 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयानों से प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध होता है।
राज्य के अधिवक्ता ने भी याचिका का विरोध किया।
अदालत की विवेचना:
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या पति द्वारा पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध धारा 377 आईपीसी के अंतर्गत अपराध माना जाएगा।
Navtej Singh Johar बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018) पर आधारित निर्णय में कहा गया:
“यदि अप्राकृतिक यौन संबंध बिना सहमति के किया गया हो, तो वह धारा 377 के तहत दंडनीय होगा।”
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा marital rape को अपराध न मानने वाले निर्णयों से असहमति व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा:
“सिर्फ इसलिए कि कोई महिला किसी पुरुष की पत्नी है, उसकी इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध की अनुमति नहीं दी जा सकती। पत्नी की व्यक्तिगत गरिमा व इच्छा की संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत रक्षा की जानी चाहिए।”
न्यायालय ने यह भी कहा:
“पति द्वारा पत्नी के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन संबंध, भले ही वह 18 वर्ष से अधिक हो, धारा 377 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध है, भले ही वह बलात्कार की परिभाषा में न आता हो।”
देरी, चिकित्सकीय परीक्षण से इनकार, व स्वतंत्र गवाहों के न समर्थन जैसे याचिकाकर्ता के अन्य तर्कों को भी खारिज कर दिया गया।
अदालत ने Aluri Venkata Ramana बनाम Aluri Thirupathi Rao मामले का हवाला देते हुए कहा:
“धारा 498ए के तहत अपराध सिद्ध करने के लिए दहेज की विशिष्ट मांग आवश्यक नहीं है; क्रूरता ही पर्याप्त है।”
निर्णय:
अदालत ने धारा 528 बीएनएसएस के तहत दायर याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, याची को निचली अदालत में जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गई।
न्यायिक विवरण:
इमरान खान उर्फ अशोक रत्न बनाम राज्य व अन्य, आवेदन संख्या 11862/2025 (धारा 528 बीएनएसएस के अंतर्गत)