हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार के उस फैसले पर नोटिस जारी किया है, जिसमें शिमला नगर निगम के मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया गया है। इस फैसले को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायमूर्ति जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने राज्य सरकार, राज्य चुनाव आयोग, शहरी विकास विभाग और शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान को नोटिस जारी किया है। इस मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।
राज्य कैबिनेट ने 25 अक्टूबर को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई बैठक में मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल बढ़ाने का निर्णय लिया था। सरकार ने तर्क दिया था कि ढाई साल का कार्यकाल “घोड़ा-तस्करी” (horse trading) जैसी स्थितियों की आशंका पैदा करता है और पंचायती राज संस्थाओं की तरह पाँच साल का कार्यकाल स्थिरता लाएगा।
यह फैसला शिमला के मेयर सुरेंद्र चौहान के पक्ष में गया है, जिनका कार्यकाल 15 नवंबर को समाप्त होने वाला था। मौजूदा आरक्षण रोस्टर के अनुसार, इसके बाद यह पद महिलाओं के लिए आरक्षित होना था।
यह जनहित याचिका अधिवक्ता अंजलि सोनी वर्मा ने दायर की है। उन्होंने दलील दी कि कार्यकाल बढ़ाने का निर्णय मौजूदा आरक्षण रोस्टर का उल्लंघन करता है, जिसके तहत अगला ढाई साल का कार्यकाल एक अनुसूचित जाति वर्ग की महिला पार्षद को मिलना था। उन्होंने यह भी बताया कि शिमला नगर निगम में 34 में से 21 पार्षद महिलाएं हैं, और कैबिनेट के इस फैसले ने उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन किया है।
नगर निगम के हालिया आम बैठक में भी इस मुद्दे पर हंगामा हुआ था। पार्षदों ने आरोप लगाया कि कार्यकाल बढ़ाने से संबंधित अध्यादेश जल्दबाजी में बिना परामर्श के लाया गया। भाजपा पार्षदों ने विरोध प्रदर्शन किया, जबकि कांग्रेस के कुछ सदस्य भी इस फैसले से असंतुष्ट नजर आए।
अब हाईकोर्ट यह जांच करेगा कि राज्य सरकार का यह निर्णय स्थानीय निकायों से संबंधित संवैधानिक और वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है या नहीं।




