हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सरकारी शिक्षिका के पक्ष में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार पहले से स्वीकृत प्रसूति अवकाश को बीच में नहीं काट सकती। अदालत ने सरकार द्वारा पारित तीन आदेशों को रद्द करते हुए शिक्षिका को संपूर्ण लाभ देने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने 11 अगस्त को यह फैसला सुनाते हुए जूनियर बेसिक टीचर (JBT) कामिनी शर्मा की याचिका स्वीकार कर ली। अदालत ने 13 दिसंबर 2021, 23 दिसंबर 2021 और 19 जून 2025 को जारी सरकारी आदेशों को निरस्त कर दिया।
याचिकाकर्ता ने 21 अगस्त 2021 को संतान को जन्म दिया था और उन्हें 180 दिन का प्रसूति अवकाश स्वीकृत हुआ था। लेकिन उनकी सेवाओं के नियमितीकरण (रेगुलराइजेशन) के बाद, 21 अक्टूबर 2021 को उन्हें अगले ही दिन मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट देकर ज्वॉइन करने को मजबूर किया गया।

इसके बाद शिक्षा विभाग ने उनके स्वीकृत अवकाश को रद्द कर दिया, अनुपस्थिति को “असाधारण अवकाश” (Extraordinary Leave) मान लिया और वेतन की वसूली की कार्यवाही भी शुरू कर दी।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नियमितीकरण के समय फिटनेस सर्टिफिकेट देने का अर्थ यह नहीं है कि प्रसूति अवकाश को बीच में समाप्त किया जा सकता है।
“रेगुलराइजेशन के समय मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट देने से प्रतिवादियों को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वे 21.8.2021 से 180 दिनों के लिए स्वीकृत प्रसूति अवकाश को समाप्त कर दें,” अदालत ने कहा।
न्यायमूर्ति शर्मा ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने 13 जनवरी 2022 को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम स्थगन आदेश (stay order) के बावजूद वेतन की वसूली का आदेश जारी किया, जो पूरी तरह अवैध है।
“इसके बावजूद प्रतिवादियों ने 19.6.2025 को याचिकाकर्ता से वसूली का आदेश पारित कर दिया, जो इस अदालत के आदेश के विपरीत है,” फैसले में कहा गया।
अदालत ने माना कि कामिनी शर्मा को फरवरी 2022 तक पूरा प्रसूति अवकाश लेने का अधिकार था। सरकार को चार सप्ताह के भीतर सभी बकाया लाभ देने का आदेश दिया गया है। यदि तय समय सीमा में भुगतान नहीं किया जाता है, तो बकाया राशि पर 6% वार्षिक ब्याज लगेगा।