गैर-मौजूद पद को अवैध बताने वाला अभ्यर्थी उसी पद पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई अभ्यर्थी किसी नियुक्ति को यह कहकर चुनौती देता है कि वह एक गैर-मौजूद (supernumerary) पद पर की गई है, तो वह बाद में उसी पद पर नियुक्ति पाने का दावा नहीं कर सकता। न्यायालय ने यह टिप्पणी दीपक पठानिया द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने पर्यावरण विज्ञान विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश में एक अन्य अभ्यर्थी की एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति को चुनौती दी थी।

मामला क्या था?

याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए नियुक्ति रद्द करने की मांग की थी कि संबंधित पद सुपरन्यूमरेरी था, जिसे न तो विज्ञापित किया गया था और न ही ऐसा कोई पद अस्तित्व में था। इसी के साथ उन्होंने यह भी प्रार्थना की कि उन्हें उस पद पर नियुक्त किया जाए क्योंकि वे प्रतीक्षा सूची में प्रथम स्थान पर थे।

विश्वविद्यालय का पक्ष

केंद्रीय विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के दो पदों को विज्ञापित किया गया था और सामान्य श्रेणी के दो अभ्यर्थियों की नियुक्ति हुई थी। अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित निजी प्रतिवादी प्रतीक्षा सूची में क्रम संख्या 2 पर थे और उन्होंने आरक्षण नीति के अनुपालन में त्रुटियों का हवाला देते हुए कई अभ्यावेदन दिए। विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी परिषद ने यूजीसी के 25.08.2006 के दिशा-निर्देशों और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के निर्देशों के आधार पर एक अन्य विभाग से स्वीकृत पद को स्थानांतरित कर सुपरन्यूमरेरी पद के रूप में उपयोग किया और उक्त अभ्यर्थी की नियुक्ति की गई।

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अदालत की टिप्पणी

न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य ने याचिकाकर्ता की विरोधाभासी स्थिति को अस्वीकार करते हुए कहा:

“जब एक बार याचिकाकर्ता के अनुसार, निजी प्रतिवादी की नियुक्ति एक गैर-मौजूद पद पर अवैध रूप से की गई थी, तो वह उस पद पर किसी प्रकार का अधिकार नहीं जता सकता। वह नकारात्मक समानता का दावा नहीं कर सकता।”

न्यायालय ने यह भी रिकॉर्ड किया कि निजी प्रतिवादी अब विश्वविद्यालय छोड़ चुके हैं और वह सुपरन्यूमरेरी पद समाप्त हो चुका है। वर्तमान में विभाग में केवल एक पद उपलब्ध है, जो अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है।

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याचिका 2013 में दाखिल की गई थी और इतने समय में कोई नया साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया।

“परिणामस्वरूप, मुझे इस याचिका में कोई गुण नहीं दिखता और इसे खारिज किया जाता है।”

सभी लंबित आवेदनों का भी निस्तारण कर दिया गया।

मामला: दीपक पठानिया बनाम केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश एवं अन्य
मामला संख्या: सिविल रिट याचिका संख्या 5254/2013
पीठ: न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य

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