हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में राज्य सरकार द्वारा सेवानिवृत्त न्यायाधीश को हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण (HPAT) के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किए जाने के बाद उसके वेतन से पेंशन की कटौती को अवैध ठहराया है।
यह फैसला न्यायमूर्ति वी.के. शर्मा (सेवानिवृत्त) द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने HPAT अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल के दौरान उनके निर्धारित वेतन से ₹4.8 लाख वार्षिक पेंशन की कटौती को चुनौती दी थी।
न्यायमूर्ति शर्मा को 29 दिसंबर 2014 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 4(2) के तहत HPAT का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और उन्होंने 27 फरवरी 2015 को कार्यभार ग्रहण किया। उस समय उनका वेतन ₹80,000 प्रति माह निर्धारित किया गया था, जिसे बाद में बढ़ाकर ₹2.25 लाख प्रति माह कर दिया गया।

हालांकि, 13 अप्रैल 2015 को कार्मिक विभाग, हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक कार्यालय आदेश जारी कर उनका वेतन इस आधार पर घटा दिया कि वे पहले से ही एक सेवानिवृत्त हाईकोर्ट न्यायाधीश के रूप में पेंशन प्राप्त कर रहे थे।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि HPAT अध्यक्ष का पद एक नया संवैधानिक पद है, न कि “पुनर्नियुक्ति” का मामला, और इसलिए पेंशन को वेतन से समायोजित करना अवैध है।
न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के अनुसार, न्यायाधीशों को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता और प्रशासनिक अधिकरण के अध्यक्ष एवं सदस्यों की सेवा शर्तें हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के समान होती हैं।
कोर्ट ने 2015 से 2019 तक जारी सभी आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें अध्यक्ष के वेतन से पेंशन की कटौती की गई थी, और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मूल नियुक्ति आदेश के अनुसार पूर्ण वेतन बिना किसी कटौती के प्रदान किया जाए।