सुनवाई के दौरान मोबाइल फोन से जवाब खोजने पर हाईकोर्ट सख्त, वकीलों को ‘कठोर आदेश’ की चेतावनी

हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने अदालती कार्यवाही के दौरान वकीलों द्वारा सवालों के जवाब खोजने के लिए मोबाइल फोन का उपयोग करने की प्रथा पर कड़ी आपत्ति जताई है। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की गतिविधियों से कार्यवाही में रुकावट आती है और यह मामले की अधूरी तैयारी को दर्शाता है। कोर्ट ने अपने आदेश को बार एसोसिएशन के सदस्यों के बीच प्रसारित करने का निर्देश दिया है और चेतावनी दी है कि यदि यह प्रथा जारी रही तो वह “कठोर आदेश” पारित करने के लिए मजबूर हो सकता है।

यह मामला RXXXXXX बनाम हरियाणा राज्य (CRM-M-31392-2025) की सुनवाई के दौरान 30 सितंबर, 2025 को माननीय न्यायमूर्ति संजय वशिष्ठ की अदालत में सामने आया।

मामले की पृष्ठभूमि

30 सितंबर, 2025 के अपने आदेश में, न्यायमूर्ति वशिष्ठ ने उल्लेख किया कि सुनवाई के दौरान, एक वकील ने अदालत द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब देने के लिए अपने मोबाइल फोन पर जानकारी खोजी। न्यायाधीश ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, “यह जानकारी विद्वान वकील को बहस के लिए मामले की तैयारी करते समय पहले से ही एकत्र कर लेनी चाहिए थी।”

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न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

इस बढ़ते चलन पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त करते हुए, न्यायालय ने कहा, “यह न्यायालय बार के सदस्यों द्वारा सुनवाई के दौरान ठीक कोर्ट के सामने बार-बार मोबाइल फोन का उपयोग करने से चिंतित और परेशान है।”

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फैसले में इस आचरण से होने वाली व्यावहारिक समस्याओं पर प्रकाश डाला गया और कहा गया, “कभी-कभी तो ऐसे मोबाइल फोन से जानकारी प्राप्त होने के इंतजार में कार्यवाही को रोकना पड़ता है।”

न्यायमूर्ति वशिष्ठ ने हाल की एक ऐसी ही घटना का भी उल्लेख किया। आदेश में कहा गया है कि CRM-M-50544-2025, “रवनीत सिंह संधू @ मनवीर सिंह बनाम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़” के मामले में 19 सितंबर, 2025 को एक मोबाइल फोन जब्त किया गया था। न्यायालय ने बताया कि उस घटना की जानकारी हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारिणी को सदस्यों के बीच प्रसारित करने के लिए भेजी गई थी।

न्यायालय ने पूरी तैयारी के बजाय सुनवाई के दौरान डिजिटल खोज पर निर्भरता को लेकर चिंता व्यक्त की और वकीलों को “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस/ऑनलाइन प्लेटफॉर्म/गूगल जानकारी” का उपयोग करने के प्रति आगाह किया।

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न्यायालय का निर्णय

न्यायालय ने मौजूदा मामले में कोई तत्काल दंडात्मक आदेश पारित नहीं किया, बल्कि एक कड़ी चेतावनी जारी करने का विकल्प चुना। न्यायमूर्ति वशिष्ठ ने निर्देश दिया, “आज के आदेश की प्रति भी प्रदान की जाए, ताकि बार एसोसिएशन के अध्यक्ष/सचिव माननीय सदस्यों को यह बता सकें कि वे सुनवाई के दौरान बार-बार मोबाइल फोन का उपयोग करने पर न्यायालय को कोई कठोर आदेश पारित करने के लिए मजबूर न करें।”

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मामले की अगली सुनवाई के लिए 20 नवंबर, 2025 की तारीख तय की गई है।

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