उच्च न्यायपालिका में व्यापक सुधार की मांग करते हुए 2,000 से अधिक अधिवक्ताओं ने एक निवेदन-पत्र का समर्थन किया है, जिसमें देशभर के हाईकोर्ट में खाली पड़े 283 न्यायाधीशों के पदों को तुरंत भरने की मांग की गई है। इसमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 26 रिक्त पद भी शामिल हैं, जहां 4 अगस्त को 10 नए न्यायाधीशों ने शपथ ली थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता ताहिर सिंह और अधिवक्ता सरबजीत सिंह के नेतृत्व में तैयार इस दस्तावेज़ में चेतावनी दी गई है कि नियुक्तियों में देरी, “संस्थागत पक्षपात” और “इन-ब्रीडिंग” न्यायपालिका की साख और स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि देशभर के हाईकोर्ट में लंबित 62 लाख से अधिक मामलों का निपटारा महज चार साल में संभव है, यदि रिक्तियां “ईमानदार, मेहनती और समर्पित” न्यायाधीशों से भरी जाएं, जो 240 कार्य दिवसों में प्रतिदिन 25 मामलों का निपटारा कर सकें।
चार पन्नों का यह निवेदन-पत्र मांग करता है कि रिक्तियों के लिए पदोन्नति प्रक्रिया कम से कम छह माह पहले शुरू होनी चाहिए और यह प्रतीक्षा नहीं होनी चाहिए कि “किसी न्यायाधीश के करीबी रिश्तेदार या केंद्रीय विधि मंत्री के रिश्तेदार पात्र हो जाएं।” इसमें यह भी सिफारिश की गई है कि जिस बार से कोई अधिवक्ता आता है, उसी हाईकोर्ट में उसे न्यायाधीश न बनाया जाए, ताकि पुराने पेशेवर रिश्तों से टकराव की स्थिति न बने। साथ ही, यह IAS और IPS की तरह पारदर्शी और स्थानांतरण-आधारित प्रणाली लागू करने का सुझाव देता है, जिसमें अधिकारी अपने गृह ज़िले में तैनात नहीं हो सकते।

निवेदन में अन्य प्रमुख प्रस्ताव शामिल हैं:
- हाईकोर्ट न्यायाधीशों के लिए 5 वर्ष का अनिवार्य स्थानांतरण नियम
- सेवानिवृत्ति के बाद भी अघोषित संपत्ति की जांच
- हाईकोर्ट में पदोन्नति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता की पदवी के लिए 45 वर्ष
- यदि किसी कोलेजियम सदस्य का रिश्तेदार उसी कोर्ट में वकालत करता हो तो सदस्य का अनिवार्य रूप से स्वयं को अलग करना
- कोलेजियम चयन के लिए स्पष्ट और योग्यता-आधारित दिशानिर्देश, ताकि वर्तमान “आकस्मिक और विवेकाधीन” प्रणाली खत्म हो
दस्तावेज़ में हालिया विवादों — जैसे जस्टिस यशवंत वर्मा, जस्टिस नारायण शुक्ला और राउज़ एवेन्यू कोर्ट में ‘कैश फॉर बेल’ मामले — का हवाला देते हुए कहा गया है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार “अब तक के उच्चतम स्तर” पर है और जनता का भरोसा बहाल करने के लिए इसे तत्काल रोका जाना चाहिए।
निवेदन ने सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों — जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस अभय एस. ओका — की प्रशंसा की है जिन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पद स्वीकार करने से इनकार किया, और सभी मौजूदा न्यायाधीशों से — “जस्टिस सूर्यकांत से वरिष्ठता क्रम में” — ऐसा करने का आह्वान किया है, ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे।
मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों से “नैतिक और संस्थागत ज़िम्मेदारी” लेते हुए इन सुधारों को लागू करने की अपील करते हुए दस्तावेज़ का अंत होता है। इसमें पूर्व CJI एम.एन. वेंकटचलैया द्वारा 1993 में लागू स्थानांतरण नीति का उदाहरण देते हुए कहा गया है — “जब भारत की न्यायपालिका का इतिहास लिखा जाएगा, तब आपका और आपके साथियों का नाम याद किया जाएगा।”