सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्टों द्वारा निर्णयों के उच्चारण में अत्यधिक देरी को गंभीरता से लिया है और विशेष रूप से झारखंड हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक अपीलों के निर्णय में लगभग तीन वर्ष की देरी पर चिंता जताई है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस अवसर पर देश भर के हाईकोर्टों के “प्रदर्शन मापदंड” की समीक्षा करने की इच्छा जताई।
यह टिप्पणी उन चार दोषियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आई, जिनकी आपराधिक अपीलों को झारखंड हाईकोर्ट ने वर्षों पूर्व सुरक्षित रखा था लेकिन निर्णय नहीं सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के पश्चात हाल ही में हाईकोर्ट ने इन मामलों में निर्णय सुनाते हुए तीन को बरी कर दिया जबकि एक मामले में विभाजित फैसला आया। इसके बावजूद, सभी चारों की रिहाई का आदेश दिया गया।
मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने विलंबित न्याय के प्रणालीगत प्रभावों को रेखांकित किया, विशेष रूप से तब जब यह किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करता हो। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की:

“हम एक बड़े मुद्दे की जांच करना चाहते हैं — हाईकोर्ट का आउटपुट क्या है? हम इस प्रणाली पर कितना व्यय कर रहे हैं, और वास्तव में उसका प्रदर्शन क्या है? इसका कोई प्रदर्शन मापदंड या बेंचमार्क तो होना चाहिए।”
पीठ ने यह भी कहा कि कुछ हाईकोर्ट जज कार्यदिवस के दौरान चाय और कॉफी ब्रेक जैसी आदतों के कारण कार्यक्षमता को प्रभावित कर रहे हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
“कुछ जज ऐसे हैं जो अत्यंत परिश्रमी हैं, जिनकी प्रतिबद्धता पर हमें गर्व होता है… लेकिन कुछ अन्य जज निराशाजनक प्रदर्शन कर रहे हैं। वे बार-बार चाय ब्रेक, कॉफी ब्रेक, इस ब्रेक, उस ब्रेक के लिए उठ जाते हैं… क्यों नहीं वे दोपहर तक निरंतर काम करते? केवल लंच ब्रेक की जरूरत होती है। इससे प्रदर्शन और नतीजे बेहतर होंगे।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि जजों के प्रदर्शन के लिए कोई स्पष्ट मानक और जवाबदेही तंत्र आवश्यक है, जिससे न्यायिक अनुशासन और दक्षता सुनिश्चित की जा सके।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता फ़ौज़िया शकील ने पीठ को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह मामला “व्यक्तिगत स्वतंत्रता की जड़ पर प्रहार करता है”, क्योंकि यदि समय पर निर्णय हुआ होता तो याचिकाकर्ताओं को तीन वर्ष पहले ही रिहाई मिल सकती थी। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने भी देरी को लेकर निराशा जताई।
उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह इसी पीठ ने देश भर के हाईकोर्टों से 31 जनवरी 2025 से पूर्व सुरक्षित किए गए मामलों का विवरण मांगा था, जिनमें अब तक निर्णय नहीं सुनाया गया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने दोहराया कि निर्णय सुनाने की समयसीमा को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में निर्धारित दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और भविष्य में इन दिशा-निर्देशों के अनुपालन को सुनिश्चित करने हेतु तंत्र विकसित किया जा सकता है।