देश की विभिन्न उच्च न्यायालयों में 371 न्यायाधीशों के पद खाली हैं और इन खाली पदों में से आधे से अधिक के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों की कॉलेजियम ने अब तक कोई सिफारिश नहीं भेजी है। यह जानकारी केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने गुरुवार को राज्यसभा में दी।
नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के एक लिखित प्रश्न के जवाब में मेघवाल ने बताया कि 18 जुलाई 2025 तक उच्च न्यायालयों में स्वीकृत 1,122 पदों के मुकाबले केवल 751 न्यायाधीश कार्यरत हैं।
उन्होंने कहा कि 371 पद खाली हैं, जिनमें से 178 पदों पर नियुक्ति की सिफारिशें सरकार और सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम के बीच प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं। लेकिन 193 रिक्तियों के लिए अभी तक उच्च न्यायालयों की कॉलेजियम से कोई सिफारिश प्राप्त नहीं हुई है।

मेघवाल ने बताया कि न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति को लेकर बनाए गए ‘मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP)’ के अनुसार, उच्च न्यायालयों में नियुक्ति की प्रक्रिया की शुरुआत संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को करनी होती है। यह सिफारिशें पद रिक्त होने से कम से कम छह महीने पहले भेजनी होती हैं।
“हालांकि यह समयसीमा शायद ही कभी पालन की जाती है,” कानून मंत्री ने कहा।
उन्होंने यह भी बताया कि उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के लिए संबंधित राज्य सरकारों की राय भी ली जाती है और प्रस्तावित नामों को लेकर उपलब्ध अन्य रिपोर्टों को भी ध्यान में रखा जाता है।
यह खुलासा ऐसे समय पर हुआ है जब देश भर में अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है और न्यायिक पदों की खाली स्थिति न्यायिक कार्यप्रणाली को प्रभावित कर रही है।
जहां सरकार कॉलेजियम से समय पर सिफारिशें न आने की बात कह रही है, वहीं सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सरकार पर नियुक्तियों को मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाता रहा है। न्यायिक नियुक्तियों की इस प्रक्रिया को लेकर टकराव का यह सिलसिला लंबे समय से बना हुआ है।