2018 से 2022 के बीच हाई कोर्ट में नियुक्त 80% जज ऊंची जातियों से: विधि मंत्रालय

संसद में हाल ही में दी गई जानकारी में सरकार ने खुलासा किया है कि पिछले पांच वर्षों में देश के विभिन्न हाई कोर्ट में नियुक्त किए गए जजों में से अधिकांश ऊंची जातियों से आते हैं। वर्ष 2018 से 2022 के बीच नियुक्त कुल 540 जजों में से लगभग 80 प्रतिशत ऊंची जातियों से थे, जो न्यायपालिका में हाशिए पर मौजूद समुदायों की भागीदारी को लेकर गंभीर चिंताओं को उजागर करता है।

विधि मंत्रालय ने न्यायिक नियुक्तियों में सामाजिक समावेशिता से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी। मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, इन नियुक्तियों में केवल 4 प्रतिशत जज अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से थे, जबकि लगभग 11 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से थे। इसके अलावा, केवल 5 प्रतिशत जज अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित थे।

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मंत्रालय ने यह भी बताया कि वर्ष 2014 से अब तक कुल कितने जजों की नियुक्ति की गई है। इसके अनुसार, इस अवधि में सुप्रीम कोर्ट में 69 और देशभर के विभिन्न हाई कोर्ट में 1,173 जजों की नियुक्ति हुई है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्त जजों की जाति या वर्गवार विस्तृत जानकारी केंद्र स्तर पर उपलब्ध नहीं है।

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संविधान के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति अनुच्छेद 124, 217 और 224 के तहत होती है, जिनमें किसी जाति या वर्ग के लिए आरक्षण का उल्लेख नहीं है। हालांकि, मंत्रालय ने बताया कि वर्ष 2018 से यह अनिवार्य कर दिया गया है कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए भेजी जाने वाली सिफारिशों में नामित व्यक्ति की सामाजिक पृष्ठभूमि का विवरण भी शामिल किया जाए।

लोकसभा में दी गई लिखित प्रतिक्रिया में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया की शुरुआत भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की जाती है, जबकि हाई कोर्ट के लिए संबंधित मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार होते हैं।

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सरकार ने दोहराया कि वह न्यायपालिका में सामाजिक विविधता बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और उसने बार-बार हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से यह अनुरोध किया है कि वे जजों की नियुक्तियों के लिए प्रस्ताव भेजते समय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं जैसे वंचित समूहों के योग्य उम्मीदवारों को भी पर्याप्त प्राथमिकता दें ताकि न्यायपालिका में विविधता को बढ़ावा मिल सके।

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