मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में राज्य सरकार को भोपाल स्थित अब बंद हो चुकी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के रासायनिक अपशिष्ट को निपटाने की अनुमति दे दी है। यह अनुमति परीक्षण रूप से की गई सफल अपशिष्ट नष्टिकरण प्रक्रिया के बाद दी गई है, जिसमें पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पाया गया।
मुख्य न्यायाधीश एस. के. कौल और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने आदेश दिया कि यह निपटान धार जिले के पीथमपुर स्थित विशेषीकृत सुविधा केंद्र में किया जाएगा और इसे 72 दिनों के भीतर पूरा करना अनिवार्य होगा।
कोर्ट का यह फैसला 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बचे हुए प्रभावों को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह त्रासदी दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक रही है, जिसमें मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से हजारों लोगों की जान चली गई थी और आज भी स्थानीय लोग इसके दुष्परिणामों से जूझ रहे हैं।

यह मामला वर्ष 2004 में स्वर्गीय आलोक प्रताप सिंह द्वारा दायर की गई याचिका से जुड़ा है, जिसके बाद से राज्य सरकार इस खतरनाक अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान को लेकर प्रयासरत है। फरवरी में हाईकोर्ट ने पीथमपुर सुविधा में तीन चरणों में परीक्षण चलाने की अनुमति दी थी, जिसे राज्य सरकार के हलफनामे के अनुसार बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया।
अतिरिक्त महाधिवक्ता हरप्रीत सिंह रूप्रह ने अदालत को बताया कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुसार अपशिष्ट को प्रति घंटे 270 किलोग्राम की दर से जलाया जाएगा। उन्होंने कहा, “अपशिष्ट जलाने की प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू कर दी जाएगी और इसकी सख्ती से निगरानी की जाएगी।”
हालांकि, कुछ स्थानीय संगठनों ने स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिमों को लेकर आपत्ति जताई है, लेकिन सरकार ने आश्वस्त किया है कि सभी सुरक्षा उपाय लागू किए गए हैं। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि समुदाय की कोई भी शिकायत सीधे राज्य सरकार के समक्ष रखी जा सकती है, जिसे गंभीरता से विचार किया जाएगा।