चौथे बॉम्बे हाईकोर्ट जज ने एचडीएफसी बैंक सीईओ की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग किया

एचडीएफसी बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक शशिधर जगदीशन द्वारा ₹2.05 करोड़ की रिश्वत के मामले में दर्ज प्राथमिकी रद्द कराने की याचिका पर सुनवाई से बॉम्बे हाईकोर्ट के एक और न्यायाधीश ने खुद को अलग कर लिया है। इस प्रकार यह इस मामले में चौथे न्यायाधीश का नाम हो गया है जिन्होंने सुनवाई से किनारा किया है, जिससे इस हाई-प्रोफाइल मामले की न्यायिक जांच टलती जा रही है और सुनवाई की तिथि को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

यह प्राथमिकी लीलावती किर्लोस्कर मेहता मेडिकल ट्रस्ट द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि जगदीशन ने पूर्व ट्रस्टियों — जिनमें चेतन मेहता शामिल हैं — को अवैध रूप से ट्रस्ट पर नियंत्रण बनाए रखने में मदद करने के एवज में वित्तीय सलाह देकर रिश्वत ली। जगदीशन ने इन आरोपों से इनकार किया है और इसे दुर्भावनापूर्ण तथा निराधार बताते हुए हाईकोर्ट में प्राथमिकी रद्द करने की मांग की है।

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बुधवार को यह मामला न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध था। लेकिन न्यायमूर्ति अंखड़ ने कोई कारण बताए बिना इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। न्यायमूर्ति घुगे ने इसे रिकॉर्ड में लेते हुए कहा कि अब यह मामला किसी अन्य पीठ के समक्ष रखा जाएगा।

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न्यायमूर्ति घुगे ने अपने आदेश में कहा, “चूंकि मेरे सहयोगी न्यायमूर्ति गौतम ए. अंखड़ इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर रहे हैं, इसलिए यह मामला अब उस पीठ के समक्ष नहीं रखा जाएगा, जिसमें हम में से कोई एक शामिल हो।”

यह 18 जून को पहली बार सूचीबद्ध होने के बाद से इस मामले में चौथी बार किसी न्यायाधीश ने खुद को अलग किया है। उस दिन न्यायमूर्ति राजेश पाटिल ने बिना कोई कारण बताए मामले से हटने का निर्णय लिया था, जबकि न्यायमूर्ति अजय गडकरी ने कहा था कि उनके सहयोगी “एचडीएफसी से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं करते।”

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इसके बाद न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने भी खुद को अलग कर लिया था। 26 जून को न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन ने यह कहते हुए हटने की घोषणा की कि उनके पास एचडीएफसी बैंक के शेयर हैं — ट्रस्ट की ओर से आपत्ति दर्ज करने के बाद।

हाईकोर्ट में लगातार देरी होने के कारण जगदीशन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। लेकिन 4 जुलाई को न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि मामला 14 जुलाई को हाईकोर्ट में सूचीबद्ध है। पीठ ने कहा, “हम अभी इस मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेंगे। यदि 14 तारीख को सुनवाई नहीं होती, तो आप फिर से आएं।”

अब न्यायमूर्ति अंखड़ की वापसी के चलते 14 जुलाई की सुनवाई भी संदिग्ध हो गई है।

जगदीशन से जुड़ी इस याचिका से परे, लीलावती अस्पताल से जुड़े अन्य मामलों में भी पूर्व में सात अन्य न्यायाधीश — न्यायमूर्ति रेवती मोहिते देरे, जी.एस. कुलकर्णी, आरिफ डॉक्टर, बी.पी. कोलाबावाला, एम.एम. सथाये, आर.आई. छागला और शर्मिला देशमुख — खुद को ट्रस्ट से पुराने संबंधों का हवाला देकर सुनवाई से अलग कर चुके हैं।

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18 जून को दर्ज प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (विश्वासघात), 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी) के आरोप शामिल हैं। जगदीशन ने यह दावा किया है कि उनका इस कथित गलत कार्य में कोई हाथ नहीं है और उन्होंने चिंता जताई है कि यह मामला उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहा है।

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