वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं और महिलाओं से जुड़ी यौन उत्पीड़न की घटनाओं को न्यायपालिका का “गंदा राज़” करार दिया है। उन्होंने यूट्यूब चैनल लल्लनटॉप को दिए एक बेबाक साक्षात्कार में कहा कि भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही का भारी अभाव है और महिलाओं को यहां उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
यह साक्षात्कार किताबवाला कार्यक्रम के अंतर्गत हुआ, जिसमें “इनकम्प्लीट जस्टिस: द सुप्रीम कोर्ट एट 75” नामक पुस्तक पर चर्चा की गई। इस पुस्तक का संपादन उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर ने किया है। पैनल चर्चा में न्यायमूर्ति मुरलीधर और वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन भी शामिल रहे। इसी दौरान इंदिरा जयसिंग ने न्यायपालिका के भीतर के चिंताजनक पहलुओं को उजागर किया।
इंदिरा जयसिंग द्वारा उठाए गए प्रमुख मुद्दे
1. महिला जजों का यौन उत्पीड़न
जयसिंग ने खुलासा किया कि उन्होंने चार महिला जजों के मामले देखे हैं जिन्हें हाईकोर्ट जजों द्वारा यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। एक चौंकाने वाला किस्सा साझा करते हुए उन्होंने बताया कि एक हाईकोर्ट जज ने एक महिला जिला जज से अपनी शादी की सालगिरह पार्टी में बॉलीवुड आइटम नंबर पर नाचने की मांग की। जयसिंग ने कहा कि यह स्थिति न्यायपालिका की शक्ति-प्रधान और आश्रित संस्कृति से पैदा होती है, जहां हाईकोर्ट जज जिला जजों के एसीआर, पदोन्नति और तबादलों पर नियंत्रण रखते हैं।

2. “हाँ जी” संस्कृति
उन्होंने कहा कि बार और बेंच दोनों में “हाँ जी, हाँ जी” की संस्कृति गहरी जड़ें जमाए हुए है। यह संस्कृति वकीलों को जजों को चुनौती देने से रोकती है और निचली एवं ऊपरी न्यायपालिका के बीच अधीनता का रिश्ता बनाए रखती है।
3. तबादलों में पारदर्शिता का अभाव
जयसिंग ने न्यायाधीशों के तबादलों को “मनमाना अधिकार” बताते हुए कहा कि कोलेजियम बिना कारण बताए तबादले करता है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
4. प्रतिनिधित्व और विविधता की कमी
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में हाल के 28 नियुक्तियों में एक भी महिला को जगह नहीं मिली। आज शीर्ष अदालत में केवल एक महिला न्यायाधीश है। जयसिंग ने अनुसूचित जाति, जनजाति और हाशिए के समुदायों के प्रतिनिधित्व के अभाव पर भी चिंता जताई।
5. अवमानना कानून का चयनात्मक उपयोग
उन्होंने कहा कि छोटे लोग अक्सर अवमानना में फंसा दिए जाते हैं, लेकिन शक्तिशाली लोग बेखौफ होकर न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगा देते हैं। गृह मंत्री के एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज पर टिप्पणी करने का उदाहरण देते हुए उन्होंने इसे “गंभीर मामला” बताया।
6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता
जयसिंग ने अंत में कहा कि संविधान में निहित वैज्ञानिक दृष्टिकोण न्यायपालिका में जीवित रहना चाहिए। न्यायपालिका को विवेकपूर्ण, आलोचनात्मक और लोकतांत्रिक संस्कृति अपनानी होगी।