मानसिक स्वास्थ्य कानून के क्रियान्वयन में देरी पर पंजाब और हरियाणा सरकारों को हाईकोर्ट की फटकार, 60 दिन में नियम अधिसूचित करने का निर्देश

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत नियमों के निर्माण में देरी को लेकर दोनों राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि दोनों राज्य 60 दिन के भीतर अधिनियम से संबंधित नियम अधिसूचित करें और 24 जुलाई तक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की खंडपीठ ने यह टिप्पणी पुष्पांजलि ट्रस्ट द्वारा दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की। यह ट्रस्ट मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 2017 के प्रभावी क्रियान्वयन की पैरवी कर रहा है।

कोर्ट ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिनियम के लागू होने के 7-8 वर्ष बीत जाने के बाद भी पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों ने अब तक इसके तहत नियम अधिसूचित नहीं किए हैं।” पीठ ने इस देरी को “खेदजनक” बताते हुए कहा कि यह कानून एक कल्याणकारी विधेयक है जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना है।

कोर्ट ने जोर दिया कि नियमों के अभाव में अधिनियम का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। “2017 का अधिनियम तब तक अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकता जब तक कि इसके लिए आवश्यक नियम नहीं बनाए जाएं। दोनों राज्य इस कानून की विभिन्न धाराओं को लागू करने के लिए नियम बनाने के कानूनी रूप से बाध्य हैं,” अदालत ने कहा।

याचिकाकर्ता आदित्य रामेत्रा ने व्यक्तिगत रूप से अदालत में बहस की और अधिनियम के तहत पूरे किए जाने वाले मुख्य लक्ष्यों को सामने रखा, जिनमें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता, अर्ध-निवास गृह (हाफवे होम) और सामूहिक निवास गृह (ग्रुप होम) की स्थापना, विशेष बजट प्रावधान, और मानसिक रोगियों से जुड़े पेशेवरों के लिए शिक्षा व प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।

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कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा दोनों के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभागों को तत्काल कार्रवाई करने और नियमों की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया है। यह मामला अब 24 जुलाई को अनुपालन रिपोर्ट के साथ पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

गौरतलब है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 संसद द्वारा पारित किया गया था और मई 2018 में अधिसूचित हुआ। इसका उद्देश्य मानसिक रोगियों के अधिकारों की रक्षा करते हुए उन्हें समुचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना है। लेकिन प्रशासनिक नियमों के अभाव में इस अधिनियम के कई प्रावधान अब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाए हैं।

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