गुरुग्राम पुलिस पर महिला वकील से यौन उत्पीड़न और मारपीट का आरोप, सुप्रीम कोर्ट से स्वतंत्र जांच की मांग

तिस हजारी बार एसोसिएशन की कार्यकारी सदस्य और एक महिला वकील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, यह आरोप लगाते हुए कि गुरुग्राम पुलिस स्टेशन में उन्हें यौन उत्पीड़न, मारपीट और अवैध हिरासत का शिकार बनाया गया। यह घटना उस समय हुई जब वह अपने एक मुवक्किल के साथ वैवाहिक विवाद के सिलसिले में सेक्टर 50, गुरुग्राम थाने गई थीं।

यह मामला आज न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुआ। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा कि वह गुरुग्राम पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर की प्रति प्रस्तुत करें। जब वकील ने बताया कि एफआईआर की प्रति माँगी गई थी लेकिन जाँच अधिकारी ने नहीं दी, तो कोर्ट ने सलाह दी कि इसके लिए संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) के समक्ष विधिवत आवेदन दिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति मसीह ने टिप्पणी की, “क्या एक वकील को इसके लिए कोर्ट से आदेश लेना चाहिए? बार आपके साथ नहीं है?” इस पर न्यायमूर्ति मिश्र ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा, “जब वकीलों की फौज उपस्थित हो तो कौन सा सीजेएम मना करेगा?”

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत में बड़ी संख्या में वकीलों की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है। जब याचिकाकर्ता की वकील ने कहा कि उन्होंने किसी को नहीं बुलाया, तो न्यायमूर्ति मसीह ने कहा, “यह सब क्यों खड़े हैं? हमें कोई ‘एक्सहिबिट’ नहीं चाहिए।”

वकील का आरोप: यौन उत्पीड़न, अवैध हिरासत, मारपीट

याचिका के अनुसार, 21 मई 2025 को वह अपने मुवक्किल के साथ पुलिस स्टेशन गई थीं, जहां मुवक्किल अपनी पत्नी के खिलाफ लिखित शिकायत देना चाहता था। आरोप है कि पुलिस अधिकारियों ने शिकायत दर्ज करने से रोका और महिला वकील के साथ मारपीट की।

याचिकाकर्ता का कहना है कि थाने में दो पुरुष पुलिसकर्मियों ने उनका यौन उत्पीड़न किया, महिला अधिकारियों ने उन्हें पीटा और उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया गया। यह भी आरोप है कि उन्हें कोई तरल पदार्थ पीने के लिए दिया गया, जिसे उन्होंने मना कर दिया।

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इसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां मेडिकल-लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) नहीं बनवाया गया और उन्हें वापस थाने लाया गया।

शिकायत और एफआईआर दर्ज

घटना के अगले दिन, उन्होंने दिल्ली के तिस हजारी पुलिस चौकी, सब्जी मंडी थाना और गुरुग्राम महिला थाना में शिकायत दी। इसके आधार पर बीएनएस की विभिन्न धाराओं — 4(2), 74, 75, 79, 115(2), 126(2), 351(2), 324(4), और 3(5) — के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

वहीं, गुरुग्राम पुलिस ने उनके खिलाफ सेक्टर-50 थाने में बीएनएस की धाराओं 121(1), 132, 221 और 351(3) के तहत एफआईआर दर्ज की है।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका में की गई मांगें

गुरुग्राम पुलिस अधिकारियों से उत्पीड़न, झूठे मुकदमे और शारीरिक क्षति की आशंका जताते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से निम्नलिखित राहतें मांगी हैं—

  • तीनों एफआईआर को स्वतंत्र जांच एजेंसी जैसे सीबीआई या दिल्ली पुलिस को हस्तांतरित किया जाए।
  • उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए।
  • मामले में शामिल गुरुग्राम पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की जाए।
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याचिका में कहा गया है कि “यह मामला राज्य सत्ता के दुरुपयोग, लिंग आधारित उत्पीड़न, पेशेवर प्रताड़ना और प्रक्रिया की गारंटी के पतन से संबंधित गंभीर संवैधानिक मुद्दों को उठाता है।”

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हिरासत के दौरान उनके परिवार या सहयोगियों को कोई सूचना नहीं दी गई, न ही गिरफ्तारी मेमो जारी किया गया, जिससे डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य, अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य और सतेन्द्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई में स्थापित दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ।

याचिकाकर्ता का कहना है कि गुरुग्राम पुलिस की कार्रवाई उनके संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों — अनुच्छेद 14, 19(1)(g), 21 और 22 — का घोर उल्लंघन है।

मामले की अगली सुनवाई कल होगी।

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