गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आसाराम की अस्थायी ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए विभाजित फैसला सुनाया। यह याचिका आयुर्वेदिक उपचार के लिए छह महीने की ज़मानत मांगते हुए दायर की गई थी। न्यायमूर्ति संदीप भट्ट ने विरोधाभासी मत रखते हुए कहा कि यह याचिका दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस साल की शुरुआत में चिकित्सा आधार पर दी गई अंतरिम ज़मानत को बढ़वाने का प्रयास मात्र है, जबकि उस अवधि का पर्याप्त चिकित्सकीय उपयोग नहीं किया गया।
86 वर्षीय आसाराम, जो 2013 में बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए थे और फिलहाल आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं, ने हाईकोर्ट में 90 दिन की पंचकर्म थेरेपी के लिए छह महीने की ज़मानत मांगी थी। हालांकि उनकी उम्र और स्वास्थ्य स्थितियों का हवाला दिया गया, लेकिन न्यायमूर्ति भट्ट ने इंगित किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7 जनवरी से 31 मार्च तक दी गई अंतरिम ज़मानत के दौरान कोई निरंतर चिकित्सा उपचार नहीं हुआ।
न्यायमूर्ति भट्ट ने अपने आदेश में कहा, “हालांकि आवेदक ने 28 जनवरी से 19 फरवरी, 2025 के बीच कई एलोपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों का दौरा किया, लेकिन उसके बाद कोई फॉलो-अप इलाज नहीं हुआ।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि आसाराम के व्यवहार से यह प्रतीत होता है कि वे केवल अपनी अस्थायी रिहाई को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसके लिए कोई ठोस आधार नहीं है।

वहीं दूसरी ओर, न्यायमूर्ति इलियश जे वोरा ने तीन महीने की ज़मानत मंज़ूर करते हुए कहा कि आसाराम की उम्र और गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे इस्कीमिक हार्ट डिजीज और हाइपोथायरॉइडिज़्म, विशेष उपचार की मांग करती हैं। उन्होंने कहा कि मेडिकल बोर्ड की सलाह और विशेष देखभाल की आवश्यकता को देखते हुए अस्थायी रिहाई जरूरी है। न्यायमूर्ति वोरा ने अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हवाला देते हुए कहा, “किसी भी व्यक्ति का स्वास्थ्य सर्वोपरि है।”
हालांकि, न्यायमूर्ति भट्ट ने इस पर कड़ा विरोध दर्ज किया और कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार का दोषी करार दिए गए व्यक्ति के लिए इस प्रकार की ज़मानत उचित नहीं है, खासकर जब पिछली ज़मानत अवधि के दौरान इलाज के स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं।
अब चूंकि दोनों जजों के फैसले एक-दूसरे से भिन्न हैं, इसलिए मामला अब तीसरे जज के पास भेजा जाएगा। चीफ जस्टिस द्वारा इस पर आगे की सुनवाई के लिए न्यायाधीश नियुक्त किया जाएगा।