गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को स्वयंभू धार्मिक गुरु आसाराम बापू को स्वास्थ्य कारणों के आधार पर छह महीने की अंतरिम जमानत दी है। यह राहत 2013 में गांधीनगर में दर्ज दुष्कर्म के मामले से जुड़ी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह जमानत केवल चिकित्सीय उपचार के लिए दी गई है और उनकी सजा तथा दोषसिद्धि यथावत रहेगी।
न्यायमूर्ति इलस जे. वोरा और न्यायमूर्ति आर. टी. वचानी की खंडपीठ ने आदेश देते हुए कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट ने भी इसी तरह की परिस्थितियों में जोधपुर मामले में आसाराम की सजा निलंबित की थी।
आसाराम बापू को 2018 में जोधपुर की अदालत ने नाबालिग शिष्या के साथ दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद 2023 में गुजरात की अदालत ने उन्हें एक अन्य महिला भक्त के साथ दुष्कर्म के 2013 के मामले में भी आजीवन कारावास की सजा दी। उन पर साजिश और गवाहों को धमकाने के आरोप भी साबित हुए थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने अदालत को बताया कि 83 वर्षीय आसाराम को हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, हाइपोथायरॉइडिज्म, एनीमिया और पाचन संबंधी बीमारियाँ हैं, जिनके लिए विशेष चिकित्सा की आवश्यकता है जो जेल में उपलब्ध नहीं है। सितंबर में उन्हें इलाज के लिए दिल्ली ले जाया गया था।
राजस्थान हाईकोर्ट ने भी पहले उनके स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति को देखते हुए सजा निलंबित की थी। जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी थी, जिसे बाद में गुजरात हाईकोर्ट ने बढ़ाया।
राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि यदि जेल में उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है, तो उन्हें राजस्थान से गुजरात की किसी जेल में स्थानांतरित किया जा सकता है।
पीड़िता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बी. बी. नाईक ने जमानत का विरोध किया और कहा कि प्रस्तुत मेडिकल सर्टिफिकेट से यह नहीं लगता कि आसाराम की हालत गंभीर है। उन्होंने कहा, “पिछली बार कहा गया था कि वे पूरे भारत में भ्रमण करना चाहते हैं, आज कहा जा रहा है कि इलाज चाहिए… अस्थायी जमानत की कोई आवश्यकता नहीं है।”
अदालत ने शर्तें लगाते हुए आदेश दिया कि आसाराम किसी भी धार्मिक सभा, प्रवचन या सार्वजनिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं करेंगे। वे पुलिस की निगरानी में रहेंगे, स्थानीय प्रशासन को अपनी स्थिति की नियमित जानकारी देंगे और चिकित्सकों द्वारा बताई गई उपचार प्रक्रिया का पालन करेंगे।




