गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि नालों और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान सफाईकर्मियों की मौत की घटनाओं में केवल ठेकेदारों को दोषी ठहराने की बजाय नगर पालिका अधिकारियों की भी जिम्मेदारी तय की जाए। अदालत ने चेतावनी दी कि ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट करने की मौजूदा प्रथा पर्याप्त नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी.एन. रे की खंडपीठ ने सोमवार को यह टिप्पणी 2016 में दायर एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान की। यह याचिका मैनुअल स्कैवेंजिंग से होने वाली मौतों से जुड़ी है।
अदालत ने कहा कि हर हादसे के बाद सरकार ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर देती है, लेकिन नया ठेकेदार भी वही खतरनाक तरीका अपनाता है और मौतें जारी रहती हैं।

“अगर ऐसा हादसा हुआ तो नगरपालिकाओं के मुख्य अधिकारियों को कार्रवाई करनी होगी… जब आप ठेकेदार को लगाते हैं तो मूल नियोक्ता की जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं होती,” मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने कहा।
पीठ ने स्पष्ट किया कि नगर पालिका के स्वास्थ्य अधिकारियों या पर्यवेक्षकों पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए। अदालत ने कहा, “इस तरह का निवारक कदम आवश्यक है, अधिकारी अपने क्षेत्र में हो रही खतरनाक प्रथाओं से अनजान नहीं रह सकते।”
हाईकोर्ट ने कहा कि यह संदेश जाना चाहिए कि मैनुअल स्कैवेंजिंग से हुई मौतों के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति लागू है।
“किसी भी ठेकेदार की गलती के लिए अंततः जिम्मेदारी नियोक्ता की होनी चाहिए… तभी सब सतर्क होंगे कि यह अस्वीकार्य है,” मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी से कहा।
त्रिवेदी ने आश्वासन दिया कि सरकार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के तरीकों पर विचार करेगी और सीवर सफाई के मशीनीकरण की प्रगति रिपोर्ट अदालत को सौंपी।
महाधिवक्ता ने बताया कि सरकार ने 16 जेटिंग-कम-सक्शन मशीनें और 24 डीसिल्टिंग मशीनें 16 शहरी स्थानीय निकायों को उपलब्ध करा दी हैं। इसके अलावा 209 मशीनों की खरीद प्रक्रिया जारी है, जिसे मार्च 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है।
मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल ने कहा कि मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा तभी खत्म हो सकती है जब नगरपालिकाओं के पास ऐसी मशीनें हों कि किसी भी सफाईकर्मी को सीवर में उतरना ही न पड़े।