गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता की जांच के लिए गठित पांच सदस्यीय समिति की संरचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता ने समिति में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति को संविधान के उल्लंघन के रूप में पेश किया था।
न्यायमूर्ति निराल एस. मेहता की एकल पीठ ने संक्षिप्त आदेश में कहा, “याचिका खारिज की जाती है।” विस्तृत निर्णय बाद में जारी किया जाएगा।
यह याचिका सूरत निवासी अब्दुल वहाब सोपारीवाला ने दाखिल की थी। उन्होंने तर्क दिया कि समिति में धार्मिक अल्पसंख्यकों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, जिससे इसकी समावेशिता और निष्पक्षता प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि विभिन्न समुदायों से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों की समीक्षा के लिए गठित समिति में विविधता का प्रतिनिधित्व होना अत्यंत आवश्यक है।

राज्य सरकार ने 4 फरवरी को यूसीसी समिति के गठन की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने बताया था कि समिति यूसीसी की आवश्यकता का मूल्यांकन करेगी और एक संभावित विधेयक का मसौदा तैयार करेगी। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि समिति के गठन के संबंध में कोई सार्वजनिक अधिसूचना जारी नहीं की गई थी।
याचिका में समिति की संरचना को संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध), और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया गया। सोपारीवाला ने यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने 16 मार्च को मुख्यमंत्री को एक प्रतिवेदन सौंपकर समिति में बदलाव की मांग की थी।
याचिका में समिति का पुनर्गठन कर उसमें व्यक्तिगत कानूनों के विशेषज्ञों और प्रभावित समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग की गई थी। इसके साथ ही, यूसीसी से संबंधित किसी भी कानून के निर्माण से पूर्व व्यापक परामर्श प्रक्रिया अपनाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की भी अपील की गई थी।
वर्तमान समिति की अध्यक्षता सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश जस्टिस रंजनाजी देसाई कर रही हैं। अन्य सदस्य हैं: सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सी.एल. मीणा, अधिवक्ता आर.सी. कोडेकर, पूर्व वीनरमद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. दक्षेश ठाकर, और सामाजिक कार्यकर्ता गीता बेन श्रॉफ।