गुजरात हाईकोर्ट ने एक वकील को न्यायपालिका के विरुद्ध बार-बार किए गए आधारहीन, आपत्तिजनक और अपमानजनक आरोपों के चलते नागरिक व आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए तीन महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। न्यायमूर्ति ए. एस. सुपेहिया और न्यायमूर्ति आर. टी. वच्छानी की खंडपीठ ने वकील द्वारा जमा कराई गई ₹5,00,000 की राशि को जब्त करने और ₹1,00,000 का अतिरिक्त जुर्माना भी लगाने का निर्देश दिया है।
मामला
हाईकोर्ट द्वारा उक्त वकील के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की गई थी। यह कार्यवाही करीब 15 वर्षों तक चली और अनेक आवेदनों के माध्यम से अदालत की अवमानना की घटनाओं की जांच की गई। गुजरात बार काउंसिल पहले ही उन्हें वकालत से निलंबित कर चुकी थी क्योंकि उन्होंने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों पर निराधार आरोप लगाए थे।
वकील ने अनेक न्यायाधीशों के विरुद्ध कानूनी नोटिस, सार्वजनिक विज्ञप्तियाँ और यहाँ तक कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन की अनुमति मांगते हुए याचिकाएं भी दायर की थीं। इनमें न्यायमूर्ति अकील कुरैशी, न्यायमूर्ति ए. एल. दवे, न्यायमूर्ति एच. एन. देवानी, और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के. एस. राधाकृष्णन जैसे न्यायाधीश शामिल थे।

व्यवहार का पैटर्न
कोर्ट के समक्ष यह रिकॉर्ड में लाया गया कि वकील ने अब तक 52 से अधिक नोटिस, पत्र और सार्वजनिक विज्ञप्तियाँ जारी कीं, जिनमें न्यायिक अधिकारियों को लक्षित किया गया। उन्होंने द वेस्टर्न टाइम्स जैसे समाचारपत्रों में सार्वजनिक नोटिस प्रकाशित किए, जिनमें न्यायाधीशों के नाम लेकर उन पर भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप लगाए गए थे।
पुलिस द्वारा गिरफ्तारी और करीब 80 दिन की हिरासत के बावजूद, वकील ने अपनी हरकतें नहीं रोकीं। उन्होंने ₹5 लाख की जमानत राशि और उपस्थिति की शर्तों का उल्लंघन किया, जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें कानूनी सहायता से वकील (श्री कुर्वन देसाई) प्रदान किया।
सीनियर अधिवक्ता श्री असीम जे. पांड्या, जो इस मामले में न्याय मित्र (amicus curiae) नियुक्त थे, ने वकील के खिलाफ Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 12 के तहत अधिकतम सज़ा की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि यह आचरण न्यायिक कार्यों में बाधा पहुंचाने वाला है और न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाता है।
वहीं, वकील की ओर से नियुक्त श्री कुर्वन देसाई ने आग्रह किया कि वकील की उम्र (62 वर्ष) और लंबी प्रक्रिया को देखते हुए नरमी बरती जाए। उन्होंने कुछ आवेदनों की सीमा-काल (limitation) की बात भी उठाई, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि 20-25 मामले ऐसे हैं जो कार्यवाही के योग्य हैं।
महत्वपूर्ण टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा:
- “अवमाननाकर्ता ने इस न्यायालय की प्रतिष्ठा को कम करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाया।”
- “उन्होंने माफ़ी नहीं मांगी बल्कि अपने अपमानजनक व्यवहार को जारी रखा।”
- “उनका व्यवहार Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 2(b) और 2(c) के तहत नागरिक और आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आता है।”
कोर्ट ने यह भी दोहराया कि उच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 215 के तहत रिकॉर्ड न्यायालय के रूप में कार्य करता है और उसे अवमानना के मामलों में आवश्यक शक्ति प्राप्त है, जो कि किसी वैधानिक अधिनियम द्वारा सीमित नहीं की जा सकती।
सजा और निर्देश
कोर्ट ने निम्न आदेश पारित किए:
- तीन महीने का साधारण कारावास
- ₹5,00,000 की ज़ब्त राशि (जो कि पहले ही जमा की जा चुकी थी)
- ₹1,00,000 का जुर्माना, जिसे तीन सप्ताह के भीतर जमा करना होगा
- पहले की 80 दिन की हिरासत को इस सजा में समायोजित नहीं किया जाएगा
- पुलिस को आदेश दिया गया है कि वह उक्त वकील को गिरफ्तार कर सजा निष्पादित करे
- आदेश की प्रति राज्य की सभी न्यायिक संस्थाओं और बार काउंसिल को भेजने का निर्देश
कोर्ट ने न्याय मित्र श्री असीम पांड्या के विरुद्ध वकील द्वारा दायर की गई Criminal Misc. Application No. 17445 of 2013 को भी खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि यह न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने के उद्देश्य से दाखिल की गई थी।