इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि जीएसटी रिफंड के किसी वास्तविक (substantive) दावे को केवल टाइपिंग गलती या आवेदन पत्र में गलत प्रावधान के हवाले के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति अजय भनोट ने जीएसटी अपीलीय प्राधिकरण द्वारा तकनीकी आधार पर रिफंड दावा खारिज करने के आदेशों को निरस्त कर दिया और मामले को मेरिट पर पुनः विचार के लिए वापस भेज दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला भारत मिंट एंड एरोमा केमिकल्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड 2 अन्य से संबंधित था। याचिकाकर्ता द्वारा अतिरिक्त केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) की वापसी के लिए किया गया आवेदन खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद यह रिट याचिका दायर की गई। अपीलीय प्राधिकरण ने अपने आदेश में यह स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता को ₹12,84,595 (सीजीएसटी) रिफंड का पात्र पाया गया, लेकिन दावा अस्वीकार कर दिया।
आदेश में कहा गया: “अपीलकर्ता ₹12,84,595/- (सीजीएसटी) की वापसी का पात्र है, जो ‘राज्य के भीतर आपूर्ति पर चुकाया गया कर बाद में अंतर-राज्य आपूर्ति ठहरने और इसके विपरीत’ के कारण है, परंतु उन्होंने आरएफडी-01 गलत मद यानी आईजीएसटी मद के अंतर्गत दाखिल किया है।” साथ ही, यह भी उल्लेख किया गया कि याचिकाकर्ता “अपने दावे के समर्थन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा” और ठोस दस्तावेजी प्रमाण के अभाव में वह सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 77(1) के तहत रिफंड का पात्र नहीं है।

पक्षकारों के तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव मेहरोत्रा और अधिवक्ता भावना मेहरोत्रा ने दलील दी कि अतिरिक्त कर की राशि जीएसटी आरएफडी-01 फॉर्म में केंद्रीय कर (सीजीएसटी) की बजाय समेकित कर (आईजीएसटी) के अंतर्गत दर्ज हो गई, जो एक “सॉफ़्टवेयर गड़बड़ी” के कारण हुआ, न कि याचिकाकर्ता की गलती से। उनका कहना था कि कारण चाहे जो भी हो, यह एक तकनीकी त्रुटि थी और दावे के मेरिट पर विचार किए बिना याचिकाकर्ता को खारिज नहीं किया जाना चाहिए था।
प्रतिवादियों की ओर से अधिवक्ता पर्व अग्रवाल ने कहा कि जो रिफंड दावा सही प्रारूप में दाखिल नहीं किया जाता, उसे संसाधित नहीं किया जा सकता, इसलिए आदेश में कोई त्रुटि नहीं है।
न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति अजय भनोट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने वास्तव में सीजीएसटी रिफंड का दावा किया था, भले ही राशि रिफंड फॉर्म में गलत मद के अंतर्गत दर्ज हो गई थी। अदालत ने माना कि गलती के कारण का कोई महत्व नहीं है।
अदालत ने कहा कि तकनीकी आधार पर याचिकाकर्ता के वास्तविक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। महत्वपूर्ण अवलोकन में न्यायालय ने कहा, “आवेदन के साथ जमा किए गए फॉर्म में गलत प्रावधान का हवाला या टाइपिंग त्रुटि, याचिकाकर्ता के वास्तविक दावों को खारिज करने या अर्जित अधिकारों को नकारने का आधार नहीं हो सकती।”
हाईकोर्ट ने पाया कि अपीलीय प्राधिकरण ने आवेदन के वास्तविक स्वरूप पर विचार किए बिना केवल तकनीकी कारणों से दावा खारिज करके “कानून में गलती” की है।
दूसरे आधार—कि याचिकाकर्ता ने “कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया”—पर न्यायालय ने कहा कि यह निष्कर्ष “याचिकाकर्ता को जारी कारण बताओ नोटिस के दायरे से बाहर” था। अदालत ने कहा कि कारण बताओ नोटिस में यह विशेष कमी नहीं बताई गई थी, इसलिए बिना सुनवाई का अवसर दिए प्रतिकूल निष्कर्ष दिया गया, जो “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन” है।
इन निष्कर्षों के आधार पर, न्यायालय ने दिनांक 29.12.2023 और 03.12.2024 के विवादित आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को “इस आदेश में किए गए अवलोकनों के आलोक में” पुनः निर्णय के लिए अपीलीय प्राधिकरण को भेज दिया। रिट याचिका को इसी सीमा तक स्वीकार किया गया।