क्षणिक आवेश में आकर किया गया कार्य: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हत्या के दोष को गैर इरादतन हत्या में बदला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दिलहरन साहू की दोषसिद्धि को संशोधित करते हुए उसकी सजा को हत्या के लिए आजीवन कारावास से घटाकर गैर इरादतन हत्या के लिए दस वर्ष कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने सत्र न्यायाधीश, जांजगीर के निर्णय के विरुद्ध दायर आपराधिक अपील संख्या 307/2024 में यह सूक्ष्म निर्णय सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक भूमि विवाद के इर्द-गिर्द घूमता है जो दुखद रूप से बढ़ गया। 29 जून, 2022 को मृतक दिलहरन साहू ने मिट्टी और कुदाल का उपयोग करके अपने आंगन के पास जल निकासी को रोकने का प्रयास किया। इस पर अपीलकर्ता के साथ तीखी बहस हुई, जिसके दौरान दिलहरन साहू ने दिलहरन पर कुदाल से कई बार प्रहार किया, जिससे वह घातक रूप से घायल हो गया। इसके बाद, अपीलकर्ता ने एक गवाह गिरधारी साहू को घटना के बारे में बताया, जिसके कारण उसे गिरफ्तार कर लिया गया और उसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया।

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ट्रायल कोर्ट ने दिलहरन साहू को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया, उसे आजीवन कारावास और ₹25,000 का जुर्माना लगाया। साहू ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

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कानूनी मुद्दे

1. मौत की हत्या की प्रकृति: अदालत ने सबसे पहले ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष की पुष्टि की कि डॉ. इकबाल हुसैन द्वारा तैयार पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर मौत हत्या की प्रकृति की थी, जिसमें मौत का कारण मस्तिष्क की चोट बताई गई थी।

2. अपराधी की पहचान: अदालत ने राकेश्वरी साहू की प्रत्यक्षदर्शी गवाही पर भरोसा किया, जिसने अपीलकर्ता द्वारा मृतक पर हमला करने की पुष्टि की। फोरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार, अपीलकर्ता द्वारा पीडब्लू-2, गिरधारी साहू के समक्ष किए गए न्यायेतर स्वीकारोक्ति और खून से सने कुदाल की बरामदगी से इसकी पुष्टि हुई।

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3. धारा 300 आईपीसी के अपवाद 1 का अनुप्रयोग: मुख्य मुद्दा यह था कि क्या अपीलकर्ता की कार्रवाई धारा 300, आईपीसी के अपवाद 1 के अंतर्गत आती है, जो गंभीर और अचानक उकसावे के तहत किए गए गैर इरादतन हत्या से संबंधित है। न्यायालय ने के.एम. नानावटी बनाम महाराष्ट्र राज्य और दौवरम निर्मलकर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य जैसे उदाहरणों का हवाला दिया, जिसमें गंभीर उकसावे के तहत एक उचित व्यक्ति के आत्म-नियंत्रण के नुकसान के परीक्षण पर जोर दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियां

पीठ ने टिप्पणी की:

“भूमि विवाद के दौरान गंभीर और अचानक उकसावे के कारण अपीलकर्ता ने अपना आत्म-नियंत्रण खो दिया, जिसके परिणामस्वरूप ऐसा कार्य हुआ जिसमें पूर्व-चिंतन का अभाव था।”

– यह नोट किया गया कि अपीलकर्ता ने क्षणिक आवेश में आकर कार्य किया, लेकिन उसे यह ज्ञान और इरादा था कि लगी चोटों से मृत्यु हो सकती है।

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न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि यह घटना धारा 300 आईपीसी के अपवाद 1 के अंतर्गत आती है और इस प्रकार धारा 302 आईपीसी के बजाय धारा 304 भाग I आईपीसी के तहत दोषसिद्धि की गारंटी देती है।

निर्णय

हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि को धारा 304 भाग I आईपीसी में संशोधित किया, तथा अपीलकर्ता को दस वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई, जबकि निचली अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखा। निर्णय में पूर्व-योजना की अनुपस्थिति और अपीलकर्ता द्वारा सामना किए गए उकसावे के प्रति प्रतिशोध की आनुपातिकता पर प्रकाश डाला गया।

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