सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि एक बार जब गिफ्ट डीड वैध रूप से निष्पादित हो जाती है, तो उसे एकतरफा रूप से रद्द नहीं किया जा सकता जब तक कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 की धारा 126 के तहत उसमें रद्द करने का अधिकार स्पष्ट रूप से सुरक्षित न किया गया हो। न्यायालय ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस निर्णय को बरकरार रखा जिसमें यह कहा गया था कि इस प्रकार का रद्दीकरण वैध नहीं है, और इस आधार पर दायर सिविल अपील को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सिविल अपील संख्या 1834/2015: जे. राधा कृष्ण बनाम पगडाला भारती एवं अन्य मामले में यह निर्णय सुनाया। यह अपील आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा 15 नवम्बर 2012 को द्वितीय अपील संख्या 1459/2005 में पारित निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी।
पृष्ठभूमि:
इस विवाद की शुरुआत 10 जनवरी 1986 को श्री के.वी.जी. मूर्ति द्वारा निष्पादित एक दस्तावेज (एक्स.बी.1) से हुई, जिसे उपहार पत्र (Gift Deed) कहा गया, और जिसे पगडाला भारती के पक्ष में निष्पादित किया गया था, जिन्हें उन्होंने अपनी दत्तक पुत्री बताया था। बाद में इस दस्तावेज को 30 दिसम्बर 1986 को एक रद्दीकरण पत्र (Deed of Cancellation) के माध्यम से रद्द कर दिया गया। इसके पश्चात 30 सितम्बर 1992 को श्री मूर्ति ने अपने भाई के पुत्र के पक्ष में एक वसीयत (Will) निष्पादित की।

ट्रायल कोर्ट ने वसीयत को मान्य ठहराते हुए अपीलकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया था, जिसे प्रथम अपीलीय न्यायालय ने भी बरकरार रखा। हालांकि, हाईकोर्ट ने दोनों निर्णयों को पलटते हुए तीन महत्वपूर्ण विधिक प्रश्नों को उत्तरदायी ठहराया:
- क्या निचली अदालतों के निर्णय ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 126 से प्रभावित हैं?
- क्या निचली अदालतों के निर्णय अनुचित या मनमाने हैं?
- क्या अदालतें एक ऐसे व्यक्ति को, जो परिवार से नहीं है, एक अपंजीकृत वसीयत के आधार पर घोषणा दे सकती हैं जबकि पहले से एक पंजीकृत गिफ्ट डीड मौजूद है?
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से पहले प्रश्न पर विचार करते हुए हाईकोर्ट के विश्लेषण से सहमति जताई। न्यायालय ने ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 126 का हवाला देते हुए कहा:
“धारा 126 के तहत, यदि किसी गिफ्ट को रद्द या निलंबित करना है तो ऐसा अधिकार स्पष्ट रूप से सुरक्षित किया जाना चाहिए।”
न्यायालय ने यह पाया कि वादी (PW-1) की गवाही केवल यह दर्शाती है कि दाता ने यह आशा करते हुए गिफ्ट डीड निष्पादित की थी कि प्रतिदाता (Donee) उनकी मृत्यु तक उनकी देखभाल करेगी। लेकिन इस प्रकार की कोई लिखित समझौता या शर्त गिफ्ट डीड में नहीं थी।
“दस्तावेज एक्स.बी.1 के निष्पादन के समय दाता और प्रतिदाता के बीच कोई समझौता नहीं था जिससे गिफ्ट डीड को रद्द करने का अधिकार सुरक्षित हो। ऐसी स्थिति में धारा 126 लागू नहीं होती।”
न्यायालय ने नांबूरी बसवा सुब्रह्मण्यम बनाम अलापाटी ह्यमावती एवं अन्य तथा एम. वेंकटासुब्बैया बनाम एम. सुब्बम्मा एवं अन्य जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि:
“यदि प्रतिदाता दाता की देखभाल नहीं करता तो यह केवल विचार के अभाव के रूप में देखा जा सकता है। इससे गिफ्ट को स्वतः रद्द नहीं किया जा सकता। यदि दाता को देखभाल नहीं मिलती, तो वह रख-रखाव के लिए न्यायालय से उपयुक्त उपाय मांग सकता है, लेकिन गिफ्ट को अपनी इच्छा से रद्द नहीं कर सकता।”
निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराया। पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक बार जब गिफ्ट डीड निष्पादित हो जाती है, और उसमें रद्द करने का अधिकार सुरक्षित नहीं किया गया हो, तो उसे बाद में रद्द नहीं किया जा सकता।
मामले का विवरण:
पीठ: न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा
मामला शीर्षक: जे. राधा कृष्ण बनाम पगडाला भारती एवं अन्य
मामला संख्या: सिविल अपील संख्या 1834/2015
अपीलकर्ता के वकील: श्री डामा शेषाद्रि नायडू (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री दीपक शर्मा, श्री वेंकटेश्वर राव
प्रतिवादियों के वकील: श्री आर. नेदुमरन (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री एम.ए. चिन्नास्वामी, श्रीमती सी. रुबावथी, श्री सी. राघवेंद्रन, श्री पी. राजा राम