उत्तर प्रदेश में प्रतिनियुक्त न्यायिक अधिकारियों के लिए “लिंग संवेदीकरण” पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन 11 एवं 12 अक्टूबर, 2025 को पारिवारिक न्यायालय मामलों की संवेदनशीलता के लिए माननीय समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, उत्तर प्रदेश, लखनऊ में किया गया, जिसमें माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश शासन, न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान तथा उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में प्रतिनियुक्त न्यायिक अधिकारियों ने भाग लिया।
इस कार्यशाला का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों को लिंग की अवधारणा से परिचित कराना, लिंग संबंधित पूर्वाग्रहों के प्रति सजग एवं संवेदनशील बनाना, घर एवं कार्यस्थल पर लिंग की भूमिका को पहचानने में सक्षम बनाना था।
माननीय श्री न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ तथा सदस्य, पारिवारिक न्यायालय मामलों की संवेदीकरण समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (दीप प्रज्जवलित करते हुए) | माननीय श्री न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ तथा सदस्य, पारिवारिक न्यायालय मामलों की संवेदीकरण समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (प्रतिभागीगणों को सम्बोधित करते हुए) |
कार्यशाला का उद्घाटन 11 अक्टूबर, 2025 को माननीय श्री न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह, न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ तथा सदस्य, पारिवारिक न्यायालय मामलों की संवेदीकरण समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा किया गया।
माननीय श्री न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह ने मुख्य उद्बोधन में यह बताया कि यह आवश्यक है कि हम पूर्वाग्रहों, जिनमें लिंग से जुड़े पूर्वाग्रह भी सम्मिलित हैं, को पीछे छोड़ने के लिए सीखने के साथ-साथ कुछ चीज़ें भूलना भी सीखें। माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर बल दिया कि यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जब न्यायाधीश किसी मुक़दमे को निर्णीत करते हैं, तो वह मात्र मुक़दमे का निस्तारण नहीं होता, बल्कि न्याय प्रदान करना होता है, और न्याय का वितरण एक दैवीय कार्य है। माननीय न्यायमूर्ति ने लेखकों लॉरेंस सैंडर्स और रॉबिन कुक की रचनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि ये रचनाएँ यह दर्शाती हैं कि मानव मनोविज्ञान किस प्रकार कार्य करता है। यह समझना आवश्यक है कि ज्ञान निरंतर विकसित होता है, और जितना अधिक व्यक्ति जानता है, उतना ही उसे यह आभास होता है कि वह बहुत कुछ नहीं जानता। खुले मन से ग्रहणशील रहना ही लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने की कुंजी है। माननीय न्यायमूर्ति ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) के निर्णय का उल्लेख करते हुए लिंग पहचान और सामाजिक मानदंडों पर विमर्श के विकास पर चर्चा की।
कार्यशाला के सत्रों को लखनऊ विश्वविद्यालय से प्रोफेसर रोली मिश्रा, डॉ. प्रशांत शुक्ला एवं डॉ. सोनाली रॉय चौधरी द्वारा संचालित किया गया। कार्यशाला को सहभागितापूर्ण एवं विचार-विमर्श उन्मुख रूप में इस उद्देश्य से तैयार किया गया है कि लैंगिक दृष्टिकोण से संबंधित धारणाओं में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सके।
प्रोफेसर रोली मिश्रा ने इस दो दिवसीय कार्यशाला की रूपरेखा तथा उद्देश्य प्रस्तुत करते हुए, लैंगिक मुद्दों की बेहतर समझ विकसित करने और रूढ़ियों को तोड़ने के लिए किए जा रहे सतत प्रयासों हेतु पारिवारिक न्यायालय मामलों के संवेदीकरण के लिए माननीय समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने प्रणालीगत असमानताओं का उल्लेख किया तथा यह बताया कि किस प्रकार सामाजिक पूर्वाग्रह समाज में अंतर्निहित हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समानता केवल एक आकांक्षा बनकर न रह जाए, बल्कि एक जीती-जागती वास्तविकता बन सके।
डॉ. प्रशांत शुक्ल ने ‘सेटिंग द टोन’ विषय पर उद्घाटन सत्र में माननीय सभागार को संबोधित करते हुए इस बात पर बल दिया कि यह समझने के लिए कि क्या किया जाना चाहिए, पुस्तकों में कही गई बातों पर चर्चा करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कार्यशाला की दिशा निर्धारित करते हुए सुकरात के कथन “ज्ञान ही सद्गुण है” का उल्लेख किया, और लैंगिक अपेक्षाओं तथा अंतर्निहित पूर्वाग्रहों की पहचान कर उन्हें दूर करने की आवश्यकता पर विस्तार से चर्चा की।
प्रोफेसर रोली मिश्रा लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ(प्रतिभागीगणों को सम्बोधित करते हुए) |
प्रोफेसर रोली मिश्रा, डॉ. प्रशांत शुक्ला एवं डॉ. सोनाली रॉय चौधरी द्वारा एक सत्र आयोजित किया गया, जिसमें मीडिया के विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से यह दर्शाया गया कि लैंगिक रूढ़िबद्धता किस प्रकार होती है। सत्र को परस्पर संवादात्मक रूप में संचालित किया गया, जिसमें भाग लेने वाले अधिकारियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
द्वितीय दिवस पर – लिंग संवेदनशीलता (Gender Sensitivity) पर चर्चा प्राचीन भारत, कुछ विख्यात पुस्तकों तथा विभिन्न न्यायनिर्णयों (case laws) के माध्यम से की गई, जिसके उपरांत एक सत्र आयोजित किया गया, जिसमें मीडिया क्लिप्स के माध्यम से लिंग संवेदनशीलता के विविध पहलुओं पर चर्चा की गई।
मा. श्रीमती न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा न्यायाधीशइलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ तथा अध्यक्ष, पारिवारिक न्यायालय मामलों की संवेदीकरण समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय(प्रतिभागीगणों को सम्बोधित करते हुए) |
समापन सत्र में मा. श्रीमती न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा, न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ तथा अध्यक्ष, पारिवारिक न्यायालय मामलों की संवेदीकरण समिति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय उपस्थित रहीं।
समापन सत्र में मा. श्रीमती न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा ने समापन उद्बोधन एवं धन्यवाद ज्ञापन किया। माननीय न्यायमूर्ति ने अपर्णा भट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021) के निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें आदेशों और निर्णयों में लैंगिक संवेदनशीलता पर चर्चा की गई थी। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर के इस कथन को उद्धृत करते हुए कि “मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा प्राप्त की गई प्रगति के स्तर से मापता हूँ”, माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर बल दिया कि हमारा उद्देश्य ऐसा समाज बनाना है जहाँ सभी के साथ मूल मानवीय गरिमा के साथ व्यवहार किया जाए और अंतर्निहित पूर्वाग्रहों को हटा दिया जाये। अंत में, यह आशा व्यक्त की गई कि इस कार्यशाला से प्राप्त शिक्षाएँ अधिकारियों के साथ भविष्य में भी बनी रहेंगी।
