एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गुरुवार को मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत से झटका लगा। अदालत ने उनकी वह याचिका खारिज कर दी जिसमें उन्होंने मुंबई से दिल्ली स्थायी रूप से स्थानांतरित होने की अनुमति मांगी थी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) मामलों की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश चकोर भाविस्कर ने स्पष्ट किया कि अदालत यात्रा की अनुमति देने पर विचार कर सकती है, लेकिन अपनी क्षेत्राधिकार से बाहर स्थायी निवास की अनुमति देना एक “पूरी तरह से अलग मामला” है।
न्यायाधीश ने कहा, “अभियुक्त को अदालत के क्षेत्राधिकार से बाहर यात्रा करने की अनुमति देना एक बात है और उसे स्थायी रूप से बाहर रहने की अनुमति देना बिल्कुल अलग बात है।” उन्होंने यह भी कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित जमानत शर्तों में नवलखा को मुंबई से बाहर स्थानांतरित होने की कोई छूट नहीं दी गई थी। उन्होंने याचिका को “अनावश्यक” बताते हुए खारिज कर दिया।
72 वर्षीय नवलखा, जो दिल्ली निवासी हैं, को अप्रैल 2020 में इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी थी, जिसमें एक प्रमुख शर्त यह थी कि वह विशेष एनआईए अदालत की अनुमति के बिना मुंबई नहीं छोड़ सकते। तब से वे अपनी साथी के साथ मुंबई में रह रहे हैं।
अपनी याचिका में नवलखा ने दलील दी थी कि मुंबई में रहना उनके लिए “बेहद कठिन” हो गया है। उन्होंने आर्थिक परेशानियों, स्थायी निवास न मिल पाने और दिल्ली में अपनी बड़ी बहन की खराब तबीयत का हवाला दिया। साथ ही उन्होंने दिल्ली में रोजगार तलाशने की आवश्यकता जताई ताकि वे अपने कानूनी खर्च और जीवनयापन की आवश्यकताएं पूरी कर सकें।
एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को हुए एक सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषणों से जुड़ा है, जिसके बाद 1 जनवरी 2018 को कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास जातीय हिंसा भड़क गई थी। पुलिस के अनुसार, यह कार्यक्रम माओवादी समूहों के समर्थन से आयोजित किया गया था। शुरुआत में यह मामला पुणे पुलिस द्वारा जांचा गया, जिसे बाद में एनआईए को सौंप दिया गया। इस मामले में कुल 16 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से अधिकांश को अब जमानत मिल चुकी है।