इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश गुण्डा एवं समाजविरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 [U.P. Gangsters Act] के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई को अन्य लंबित आपराधिक मामलों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जैसा कि धारा 12 में विधिक रूप से निर्धारित है। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकलपीठ ने विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए कोर्ट), बलरामपुर द्वारा पारित उन आदेशों को रद्द कर दिया जिसमें अभियोजन की प्राथमिकता संबंधी याचिका खारिज की गई थी और पुलिस अधिकारियों पर लागत (cost) लगाई गई थी।
यह आदेश क्रिमिनल रिवीजन संख्या 366 ऑफ 2025 में पारित किया गया जिसे उत्तर प्रदेश शासन द्वारा विशेष सत्र न्यायालय, बलरामपुर के 21.12.2024 और 10.01.2025 के आदेशों को चुनौती देते हुए दाखिल किया गया था।
पृष्ठभूमि
यह मामला थाना तुलसीपुर, जनपद बलरामपुर में एफआईआर संख्या 54/2022 के तहत दर्ज मुकदमे से संबंधित है जिसमें छह लोगों पर गैंग बनाने और इसके सरगना रिज़वान ज़हीर के नेतृत्व में गंभीर आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगे। आरोप है कि उन्होंने एक पूर्व ब्लॉक प्रमुख की हत्या की साजिश रची थी और पंचायत चुनावों के दौरान हिंसक घटनाएं की थीं। इन घटनाओं के संबंध में अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गईं थीं और चार्जशीट भी दाखिल की गई थीं।
अभियोजन ने विशेष न्यायाधीश के समक्ष धारा 12 और नियम 57 (UP Gangsters Rules, 2021) का हवाला देते हुए एक आवेदन दायर कर मांग की थी कि गैंगस्टर एक्ट के तहत चल रहे मुकदमे को प्राथमिकता दी जाए और अन्य ‘बेस केस’ जैसे कि धारा 302/120बी आईपीसी वाले मुकदमे को स्थगित रखा जाए।
पक्षकारों की दलीलें
आरोपियों की ओर से इस आवेदन का विरोध किया गया और मोबिन इफ्तिखार ज़ैदी बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (2011) का हवाला देते हुए कहा गया कि धारा 12 का उद्देश्य केवल गैंगस्टर एक्ट के मुकदमों में विलंब रोकना है, न कि अन्य आपराधिक मामलों की सुनवाई को रोक देना।
विशेष न्यायाधीश ने अभियोजन की याचिका को खारिज कर दी और यह आदेश दिया कि पुलिस अधिकारियों के वेतन से लागत वसूल की जाए। साथ ही जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक बलरामपुर के विरुद्ध पृथक आपराधिक कार्यवाहियों का आदेश भी पारित किया गया।
हाईकोर्ट के अवलोकन
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने स्पष्ट किया कि विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश धर्मेन्द्र किर्थल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013) 8 SCC 368 में उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई धारा 12 की व्याख्या की अनदेखी में पारित किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि गैंगस्टर एक्ट के मुकदमों की सुनवाई को वरीयता देना विधायिका की मंशा है और अन्य मामलों की कार्यवाही स्थगित रहनी चाहिए।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि धारा 20 गैंगस्टर एक्ट को अन्य किसी भी विरोधाभासी कानून पर प्राथमिकता प्रदान करती है।
श्रद्धा गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) 19 SCC 57 के हवाले से भी अदालत ने दोहराया कि गैंगस्टर एक्ट का उद्देश्य विशेष न्यायालयों के माध्यम से त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करना है।
निर्णय
हाईकोर्ट ने रिवीजन को स्वीकार करते हुए निम्न आदेशों को रद्द कर दिया—
- विशेष सत्र न्यायालय द्वारा दिनांक 21.12.2024 को पारित आदेश का पैरा (b),
- 10.01.2025 के आदेश का क्लॉज (ga), तथा
- 13.01.2025 को पारित आदेश जिनमें जिलाधिकारी व एसपी बलरामपुर के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाहियों का निर्देश दिया गया था।
साथ ही, इनसे संबंधित क्रिमिनल मिक्सड केस नंबर 08/2025, 10/2025 और 12/2025 की संपूर्ण कार्यवाही को भी समाप्त कर दिया गया।
प्रकरण शीर्षक: राज्य बनाम विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए कोर्ट), बलरामपुर व अन्य
प्रकरण संख्या: क्रिमिनल रिवीजन संख्या 366 ऑफ 2025