केंद्र सरकार संसद में ऐसे विधेयक लाने की तैयारी कर रही है, जिनके तहत प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और केंद्र व राज्यों के अन्य मंत्रियों को गंभीर आपराधिक आरोप में गिरफ्तारी के बाद पद से हटाना अनिवार्य होगा। अगर यह कानून बनता है, तो मौजूदा व्यवस्था में बड़ा बदलाव आएगा, क्योंकि अभी मंत्री या विधायक को केवल अदालत से दोषी ठहराए जाने पर ही अयोग्य घोषित किया जाता है।
अभी क्या है कानून
अभी संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत मंत्री को केवल दोषसिद्धि (सजा) के बाद ही पद से हटाया जा सकता है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति और राज्यपाल करते हैं, लेकिन उन्हें पद से हटाने का निर्णय राजनीतिक तौर पर उनके ही सुझाव पर होता है। गिरफ्तारी के बाद हटाने का कोई स्पष्ट नियम नहीं है।
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने लिली थॉमस केस में फैसला दिया था कि दोषसिद्धि होते ही सांसद या विधायक की सदस्यता खत्म हो जाएगी। पहले तीन महीने की मोहलत मिलती थी, जिसे कोर्ट ने खत्म कर दिया।
प्रस्ताव में क्या होगा नया
नए कानून में यह प्रावधान होगा कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री गंभीर अपराध में गिरफ्तार होकर पुलिस या न्यायिक हिरासत में जाता है, तो उसे तुरंत मंत्री पद से हटना पड़ेगा।
“गंभीर अपराध” में जघन्य अपराध, भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले या ऐसे अपराध आ सकते हैं, जिनकी न्यूनतम सजा 7 साल या उससे अधिक है।

क्यों हो रहा है यह बदलाव
समर्थकों का कहना है कि गंभीर आरोप में गिरफ्तार व्यक्ति के पास शासन करने का नैतिक अधिकार नहीं होता और जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए यह जरूरी कदम है। इससे राजनीति में अपराधीकरण पर रोक लगेगी और सरकार में ईमानदारी बनी रहेगी।
किन आपत्तियों की संभावना
- निर्दोष मानने का सिद्धांत – गिरफ्तारी का मतलब दोषी ठहराना नहीं होता, इसलिए सिर्फ गिरफ्तारी के आधार पर पद से हटाना न्याय के मूल सिद्धांत के खिलाफ माना जा सकता है।
- दुरुपयोग का खतरा – कानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को हटाने के लिए किया जा सकता है।
- न्यायिक प्रक्रिया में दखल – गिरफ्तारी कार्यपालिका का कदम है, जबकि दोष तय करना अदालत का काम है।
- मंत्री और विधायक के लिए अलग मानक – विधायक की अयोग्यता दोषसिद्धि पर होती है, लेकिन मंत्री के लिए गिरफ्तारी पर हटाने का प्रावधान अधिक सख्त होगा।