सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि नई जमानत या सजा निलंबन याचिका दायर करना अभियुक्त का अधिकार है, भले ही इससे पहले की याचिका खारिज हो चुकी हो। यह अधिकार इस पर निर्भर नहीं करता कि पिछली याचिका खारिज करते समय सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष अनुमति दी थी या नहीं।
जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वरले की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें केवल इस आधार पर जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी कि सर्वोच्च न्यायालय ने पिछली याचिका खारिज करते समय नई याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामला merits (मामले के गुण-दोष) के आधार पर नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया।
मामले की पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ता, कालू @ चेतन, ने 10 जनवरी 2025 के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता की सजा निलंबन और जमानत की याचिका (I.A. No. 20137/2024 in Criminal Appeal No.1572/2017) खारिज कर दी थी। खारिज करने का एकमात्र आधार यह था कि अपीलकर्ता की पहले की विशेष अनुमति याचिका (SLP (Crl.) (D) No.20153/2023) खारिज करते समय सुप्रीम कोर्ट ने नई जमानत याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी थी।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय:
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के reasoning से असहमति जताई। जस्टिस मित्थल और जस्टिस वरले की पीठ ने स्पष्ट किया कि बार-बार जमानत याचिका दायर करने की कानूनी स्थिति क्या है।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा, “पहली जमानत/सस्पेंशन याचिका खारिज या रद्द होने के बाद नई याचिका दायर करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।” कोर्ट ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि अपीलकर्ता की पहले की विशेष अनुमति याचिका खारिज होने का मतलब यह नहीं है कि वह बदलती परिस्थितियों में फिर से जमानत मांगने का अधिकार खो देता है।
निर्णय में कहा गया, “अपीलकर्ता की SLP (Crl.) (D) No.20153/2023 खारिज करते समय इस न्यायालय ने उसका यह अधिकार नहीं छीना कि यदि परिस्थितियाँ अनुमति देती हैं, तो वह नई जमानत/सस्पेंशन याचिका दायर कर सके।”
महत्वपूर्ण टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “पहली याचिका के खारिज या रद्द होने के बाद नई जमानत/सस्पेंशन याचिका दायर करना अभियुक्त का अधिकार है और केवल इस आधार पर कि सर्वोच्च न्यायालय ने नई याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी थी, हाईकोर्ट का याचिका खारिज करना उचित नहीं था।”
अंतिम निर्णय:
इन कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी 2025 का हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अपीलकर्ता की याचिका I.A. No. 20137/2024 (Criminal Appeal No.1572/2017) को मूल स्थिति में बहाल किया जाए और इसे 25 जुलाई 2025 को हाईकोर्ट की संबंधित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए। कोर्ट ने पक्षकारों के वकीलों को निर्देश दिया कि वे उस तारीख को उपस्थित रहें ताकि सुनवाई की तारीख तय की जा सके। इस प्रकार, अपील का निस्तारण कर दिया गया।