इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीएनएसएस (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता), 2023 की धारा 528 के अंतर्गत एफआईआर और उसके परिणामस्वरूप की गई जांच को रद्द करने की याचिका की वैधानिकता से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न को नौ न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के समक्ष भेज दिया है। न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने यह आदेश शशांक गुप्ता उर्फ गुड्डू व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य मामले में पारित किया।
मामले की पृष्ठभूमि
आवेदकों ने सीजेएम चित्रकूट द्वारा 3 फरवरी 2025 को बीएनएसएस की धारा 175(3) (जो कि सीआरपीसी की धारा 156(3) के समकक्ष है) के अंतर्गत पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के आदेश के विरुद्ध याचिका दाखिल की थी। बाद में उन्होंने 26 फरवरी 2025 को दर्ज एफआईआर संख्या 114/2025, जो कि आईपीसी की धारा 498ए, 323, 504, 506, 342 तथा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के अंतर्गत दर्ज की गई थी, को रद्द करने की मांग भी की।
कानूनी प्रश्न
राज्य सरकार की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता (एजीए) ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की सात न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ द्वारा दिए गए निर्णय रामलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1989 SCC OnLine All 73) के अनुसार, धारा 528 बीएनएसएस (पूर्व में धारा 482 सीआरपीसी) के अंतर्गत एफआईआर रद्द करने की याचिका पोषणीय नहीं है और इस हेतु केवल संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट याचिका ही दायर की जा सकती है।
आवेदकों की दलीलें
वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मेन्द्र वैश्य ने तर्क दिया कि रामलाल यादव निर्णय में जिस प्रिवी काउंसिल के निर्णय (Khawaja Nazir Ahmad, 1944 SCC OnLine PC 29) पर भरोसा किया गया था, उसकी गलत व्याख्या की गई। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के भजन लाल बनाम हरियाणा राज्य (1992 Supp 1 SCC 335), गुलाम मुस्तफा बनाम कर्नाटक राज्य (2023) 18 SCC 265 तथा हाल ही के इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य (Criminal Appeal No.1545/2025) जैसे फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय को एफआईआर रद्द करने का अधिकार धारा 528 बीएनएसएस (पूर्ववत 482 सीआरपीसी) में प्राप्त है।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य की ओर से एजीए पंकज सक्सेना ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज किया जाना एक प्रशासनिक कार्य है, जो सीआरपीसी की धारा 154 (बीएनएसएस में धारा 173 के समकक्ष) के तहत आता है, और इस पर धारा 528 के अंतर्गत हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि जब तक अदालत में चार्जशीट दाखिल नहीं होती, तब तक धारा 528 बीएनएसएस के अंतर्गत हस्तक्षेप का कोई प्रश्न नहीं उठता।
एमिकस क्यूरी की राय
वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष तिवारी (एमिकस क्यूरी) ने स्पष्ट किया कि एफआईआर और जांच भी सीआरपीसी की विधि के तहत होती है, अतः यदि प्राथमिकी से कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता, तो अदालत धारा 528 बीएनएसएस के तहत हस्तक्षेप कर सकती है। उन्होंने कहा, “सामान्यतः एफआईआर को रद्द करने का उपाय धारा 528/482 सीआरपीसी है और अनुच्छेद 226 का प्रयोग केवल असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए।”
अधिवक्ता जितेन्द्र कुमार शिशोदिया, पैनल अधिवक्ता, ने सुप्रीम कोर्ट के परबतभाई आहिर, आनंद मोहत्ता, अभिषेक बनाम म.प्र., महमूद अली बनाम यूपी राज्य (2023) 15 SCC 488 जैसे फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि एफआईआर तथा जांच धारा 528 बीएनएसएस के तहत रद्द की जा सकती है यदि वे न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग या दुर्भावना से प्रेरित प्रतीत हों।
अधिवक्ता रौनक चतुर्वेदी ने कहा कि रामलाल यादव पूर्णपीठ का निर्णय अब सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसलों के संदर्भ में विधिक रूप से जीवित नहीं रह गया है। उन्होंने स्वप्न कुमार गुहा, टी.टी. एंटोनी, नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय जांच के चरण में भी हस्तक्षेप कर सकती है यदि प्राथमिकी में कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता।
न्यायिक विश्लेषण
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बीएनएसएस की धारा 528 के तहत तीन प्रकार की स्थितियों में उच्च न्यायालय अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग कर सकता है:
- संहिता के किसी आदेश को प्रभावी बनाने हेतु
- न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने हेतु
- न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु
न्यायालय ने कहा कि रामलाल यादव में प्रिवी काउंसिल के पुराने कानूनों की गलत व्याख्या की गई, जबकि आर.पी. कपूर, भजनलाल, स्वप्न कुमार गुहा जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में स्पष्ट रूप से माना गया है कि उच्च न्यायालय संज्ञेय अपराध न बन पाने की स्थिति में भी जांच को रद्द कर सकता है।
निर्णय
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा:
“क्या रामलाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में पूर्णपीठ द्वारा दिया गया निर्णय, जिसमें धारा 528 बीएनएसएस के तहत एफआईआर व जांच रद्द करने की याचिका को पोषणीय नहीं माना गया था, आज भी मान्य विधि है या नहीं — यह एक ऐसा महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न है, जिस पर स्पष्ट निर्णय आवश्यक है।”
इसलिए, न्यायालय ने इस मुद्दे को 9 जजों की बड़ी पीठ को संदर्भित कर दिया है।
मामला: आवेदन संख्या 10997/2025, धारा 528 बीएनएसएस
पक्षकारों के अधिवक्ता: धर्मेन्द्र वैश्य (आवेदक की ओर से), पंकज सक्सेना (राज्य की ओर से)
एमिकस क्यूरी: वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष तिवारी, अधिवक्ता जितेन्द्र शिशोदिया व रौनक चतुर्वेदी