पत्नी द्वारा  झूठे आरोप और आत्महत्या की धमकी मानसिक क्रूरता: बॉम्बे हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद में तलाक को सही ठहराया

वैवाहिक विवादों में मानसिक क्रूरता की परिभाषा पर एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत और प्रथम अपीलीय न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा आत्महत्या की धमकियां देना और झूठे आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है और इसके आधार पर विवाह विच्छेद को वैध ठहराया जा सकता है।

यह फैसला न्यायमूर्ति आर. एम. जोशी ने 20 फरवरी 2025 को द्वितीय अपील संख्या 268/2018 में सुनाया, जिसमें निचली अदालतों के निर्णयों को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

मामले की पृष्ठभूमि

इस दंपती का विवाह अप्रैल 2009 में हुआ था और इनकी एक पुत्री भी है। लेकिन विवाह के एक वर्ष के भीतर ही पत्नी कथित रूप से बिना किसी सूचना के ससुराल छोड़कर मायके चली गई। पति का दावा था कि यह प्रस्थान अचानक हुआ और इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया।

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पति द्वारा समझौते की कोशिशें की गईं लेकिन पत्नी और उसके परिवार की ओर से कथित तौर पर दुर्व्यवहार और अपमान का सामना करना पड़ा। पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी और उसके परिजन वैवाहिक जीवन में बार-बार हस्तक्षेप करते थे और पति के परिवार को अपमानित करते थे।

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इस विवाद का मुख्य केंद्र यह आरोप था कि पत्नी ने झूठा आरोप लगाया कि पति के पिता ने उसके साथ अश्लील हरकत करने की कोशिश की। हालांकि इस गंभीर आरोप को लेकर न तो पुलिस में कोई शिकायत दर्ज की गई और न ही किसी प्राधिकरण से संपर्क किया गया। इसके अतिरिक्त, पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी बार-बार आत्महत्या की धमकी देती थी और उसे और उसके परिवार को जेल भेजने की धमकी देती थी।

इन्हीं आधारों पर 2016 में पति ने मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक की याचिका दायर की, जिसे पारिवारिक अदालत ने मंजूर कर लिया। यह फैसला 2017 में प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा भी बरकरार रखा गया।

मुख्य कानूनी प्रश्न

पील में निम्नलिखित कानूनी बिंदु उठाए गए:

  1. क्या पत्नी का आचरण हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत ‘क्रूरता’ की श्रेणी में आता है?
  2. क्या निचली अदालतों ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन नहीं किया?
  3. क्या दिवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 100 के तहत कोई महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न उठता है जो हस्तक्षेप को उचित ठहरा सके?
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पत्नी के वकील का तर्क था कि आरोप क्रूरता की परिभाषा में नहीं आते और निचली अदालतों ने साक्ष्य की गलत व्याख्या की है। वहीं, पति के वकील ने कहा कि पत्नी के लगातार व्यवहार और सुसंगत साक्ष्य यह साबित करते हैं कि क्रूरता हुई है।

कोर्ट की टिप्पणी और निर्णय

न्यायमूर्ति आर. एम. जोशी ने फैसले में विस्तार से पत्नी के व्यवहार के मानसिक प्रभाव और गंभीरता पर प्रकाश डाला।

एक प्रमुख बिंदु था – पति के पिता पर झूठा यौन आरोप। कोर्ट ने कहा:

“पति ने केवल यह नहीं कहा कि पत्नी आत्महत्या कर उन्हें और उनके परिवार को जेल भेजने की धमकी देती थी, बल्कि वास्तव में ऐसा प्रयास भी किया गया। ऐसा आचरण मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है और तलाक का आधार बनता है।”

कोर्ट ने यह भी कहा:

“पत्नी ने यह गंभीर आरोप लगाने के बावजूद पुलिस या किसी अन्य प्राधिकरण से शिकायत नहीं की, और न ही इसका कोई स्पष्टीकरण दिया कि ऐसा क्यों किया गया।”

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास किया था और अदालत में अपने बयान से बचने के लिए हाथों में मेंहदी लगाकर आई, ताकि जिरह से बच सके। कोर्ट ने इसे जानबूझकर साक्ष्य को दबाने का प्रयास माना।

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धारा 100 सीपीसी के तहत समीक्षा की सीमा पर कोर्ट ने स्पष्ट किया:

“धारा 100 के अंतर्गत यह कोर्ट निचली अदालतों के साक्ष्य का पुनर्मूल्यांकन नहीं कर सकती। अपील तभी स्वीकार की जा सकती है जब यह सिद्ध हो कि निचली अदालतों के निष्कर्ष साक्ष्य के विपरीत हैं और उनका कोई आधार नहीं है।”

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य दर्शाते हैं कि ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा विवाह विच्छेद के लिए जो निष्कर्ष निकाला गया, वह एक-दूसरे से मेल खाता है और उसमें कोई दुर्बुद्धि या विचलन नहीं दिखता, जो इस कोर्ट के हस्तक्षेप का आधार बने।”

अतः द्वितीय अपील खारिज कर दी गई।

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