भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के समुदाय में व्याप्त गंभीर समस्या पर सख्त रुख अपनाते हुए फर्जी वकीलों के मुद्दे को शीघ्र हल करने का निर्देश दिया है। यह समस्या पिछले एक दशक से व्यवस्था को प्रभावित कर रही है। देश में अनुमानित 15 लाख वकीलों में से करीब 20% के बिना मान्य कानूनी योग्यता के प्रैक्टिस करने की संभावना ने सभी को चौंका दिया है।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार व न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा 2015 में शुरू की गई डिग्री सत्यापन प्रक्रिया में हो रही देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त की। इस समस्या की गंभीरता उस समय और बढ़ गई जब बीसीआई के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने यह खुलासा किया कि बड़ी संख्या में वकील बिना वैध डिग्री के अदालतों में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सत्यापन प्रक्रिया की धीमी गति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह “अनंत प्रक्रिया” नहीं हो सकती और इसे एक तय समय सीमा में पूरा करना होगा। अदालत के निर्देशों पर प्रतिक्रिया देते हुए बीसीआई के वकील आर बालासुब्रमण्यम ने कहा कि डिग्री सत्यापन एक जटिल और राज्य-स्तरीय प्रक्रिया है, जिसकी वजह से इसमें देरी हो रही है।
हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली और पंजाब में 1,000 से अधिक फर्जी वकील पाए गए हैं। बार काउंसिल ऑफ दिल्ली द्वारा हाल ही में किए गए सत्यापन में 117 वकीलों के फर्जी प्रमाण पत्र पाए गए, जिनमें से 95 ने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की फर्जी डिग्रियां जमा की थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने अब बीसीआई को 8 हफ्तों के भीतर विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने इस प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि कानूनी पेशे की गरिमा सुरक्षित रहे और उन निर्दोष वादियों को बचाया जा सके जिन्हें इन फर्जी वकीलों ने धोखा दिया है।