इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) के एक अधिकारी की सेवा से बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। याचिकाकर्ता पर आरोप था कि उसने पदोन्नति के लिए एक फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था। न्यायालय ने माना कि विभागीय कार्यवाही निष्पक्ष रूप से की गई थी और निर्णय विधिसम्मत साक्ष्यों के आधार पर लिया गया था, इसलिए न्यायिक हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने अकांश चौधरी बनाम भारत संघ एवं अन्य (रिट-ए संख्या 7181/2025) में दिनांक 29 जुलाई 2025 को पारित किया।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता अकांश चौधरी ने 2013 में इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स, धनबाद (अब IIT धनबाद) से बी.टेक (माइनिंग इंजीनियरिंग) में स्नातक किया। उन्होंने दावा किया कि वे पहले मेसर्स हंसा मैनेजमेंट सर्विसेज प्रा. लि. में मैनेजमेंट ट्रेनी और फिर जनवरी 2014 से जनवरी 2017 तक मेसर्स ज़िक्रॉन शुगर सॉल्यूशन्स प्रा. लि. (ZSSPL) में ट्रेड एक्जीक्यूटिव के रूप में कार्यरत रहे।

2017 में उन्हें एएआई के वडोदरा एयरपोर्ट पर जूनियर एक्जीक्यूटिव (कॉमर्शियल) पद पर नियुक्त किया गया। उस समय उन्होंने ZSSPL में अपने कार्यानुभव का उल्लेख नहीं किया। 2018 में जब उन्होंने मैनेजर (कॉमर्शियल) के पद हेतु आवेदन किया, जिसके लिए मार्केटिंग में पाँच वर्षों का अनुभव आवश्यक था, तब उन्होंने ZSSPL का एक अनुभव प्रमाणपत्र दिनांक 22.02.2017 प्रस्तुत किया। इस आधार पर उन्हें कोयंबटूर एयरपोर्ट में 3 जून 2019 को नियुक्त किया गया।
हालांकि, 10 मई 2019 को एक गुमनाम शिकायत प्राप्त हुई, जिसमें आरोप लगाया गया कि प्रस्तुत प्रमाणपत्र फर्जी है। प्रारंभिक पुष्टि के बाद मामले की गहराई से जांच की गई और 3 नवम्बर 2022 को आरोप पत्र जारी किया गया।
विभागीय जांच और निष्कर्ष
अकांश चौधरी ने जांच प्रक्रिया में भाग लिया और गवाहों से जिरह की। जांच अधिकारी ने 6 नवम्बर 2023 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया:
“आरोपित अधिकारी के विरुद्ध आरोप सत्य प्रतीत होते हैं, अतः मेरी टिप्पणी इस प्रकार है: आरोप संख्या 1 – सिद्ध।”
जांच की प्रमुख बातें:
- याचिकाकर्ता ने 2017 में नियुक्ति के समय ZSSPL का कोई प्रमाणपत्र नहीं दिया था, केवल 2018 में पदोन्नति के समय यह प्रस्तुत किया।
- ZSSPL का निरीक्षण करने पर पाया गया कि वह केवल एक कमरे का छोटा कार्यालय था, जिसमें मात्र एक कर्मचारी कार्यरत था, जिससे उसकी वैधता पर संदेह उत्पन्न हुआ।
- इस निरीक्षण पर जिरह के दौरान याचिकाकर्ता ने कोई आपत्ति नहीं जताई।
- याचिकाकर्ता ZSSPL में वेतन पाने का कोई रिकॉर्ड प्रस्तुत नहीं कर सके, न ही उन्होंने आयकर विवरणी में ऐसी किसी आय की घोषणा की।
दंड और अपील
जांच रिपोर्ट के आधार पर अनुशासनिक प्राधिकारी ने एएआई कर्मचारी आचरण, अनुशासन एवं अपील विनियम, 2003 के विनियम 28 के तहत “सेवा से हटाए जाने (जो भविष्य की नियुक्ति के लिए अपात्रता नहीं होगी)” की सजा सुनाई। याचिकाकर्ता की अपील 16 जनवरी 2025 को खारिज कर दी गई।
हाईकोर्ट में प्रस्तुत तर्क
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में दलील दी कि उन्हें पर्याप्त सुनवाई का अवसर नहीं मिला और कुछ दस्तावेज़ उन्हें कभी दिखाए ही नहीं गए। उन्होंने ZSSPL के कार्यालय के निरीक्षण को ex parte बताया और आयकर विवरणी में वेतन का उल्लेख न करने को अनजाने में हुई त्रुटि बताया।
वहीं, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हुआ और याचिकाकर्ता को गवाहों से पूरी तरह जिरह करने का अवसर मिला। उन्होंने प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के समय और अन्य विसंगतियों पर भी ध्यान दिलाया।
न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय
न्यायालय ने State of Rajasthan v. Bhupendra Singh, 2024 SCC OnLine SC 1908 का हवाला देते हुए कहा:
“जहाँ कुछ साक्ष्य उपलब्ध हों, जो निर्णय का समर्थन करते हों, वहाँ हाईकोर्ट का कार्य यह नहीं कि वह साक्ष्य की समीक्षा कर स्वतंत्र निष्कर्ष निकाले।”
न्यायमूर्ति शमशेरी ने कहा:
“यह निस्संदेह रूप से कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता को जांच के दौरान अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर मिला। उन्होंने गवाहों से लम्बी जिरह की है, अतः निर्णय प्रक्रिया में कोई त्रुटि नहीं है।”
न्यायालय ने निम्न बातों को महत्वपूर्ण माना:
- ZSSPL प्रमाणपत्र केवल पदोन्नति के समय ही प्रस्तुत किया गया।
- वेतन रिकॉर्ड और आयकर विवरणी में स्पष्टता का अभाव।
- ZSSPL कार्यालय के निरीक्षण पर कोई प्रश्न नहीं उठाए गए।
अंततः न्यायालय ने कहा कि दंड आदेश विधिसम्मत साक्ष्यों पर आधारित है और “चौंकाने वाला या असंगत” नहीं है।
“ दंड आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं बनता।”
न्यायालय ने रिट याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी को वैध और प्रमाणित साक्ष्यों पर आधारित ठहराया।