छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लगभग 838 किलोग्राम गांजे की तस्करी के मामले में दोषसिद्ध तीन अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि यदि कोई अभियुक्त संगठित मादक पदार्थ साजिश में अपनी भूमिका का समुचित स्पष्टीकरण नहीं देता है, तो यह उसके बचाव के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। साथ ही, न्यायालय ने निदेशालय राजस्व खुफिया (DRI) द्वारा एक सह-आरोपी की रिहाई के विरुद्ध दायर याचिका को भी खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह फैसला 20 जून 2025 को पारित किया। यह फैसला स्पेशल जज (NDPS), जांजगीर-चांपा द्वारा 30 अक्टूबर 2023 को पारित निर्णय के विरुद्ध दाखिल तीन अपीलों और एक अनुमति याचिका पर सुनवाई के उपरांत दिया गया।
पृष्ठभूमि
अजय पांडेय, धरम सिंह और बलविंदर सिंह को NDPS अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(C) और 29(1) के तहत दोषी ठहराया गया था। उन्हें 20 वर्ष के कठोर कारावास और ₹2,00,000 के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में 2 वर्ष का अतिरिक्त साधारण कारावास भुगतने का आदेश दिया गया।
चौथे अभियुक्त, रविशंकर मिश्रा को ट्रायल कोर्ट द्वारा संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया गया था। DRI ने उनकी रिहाई के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378(3) के अंतर्गत अनुमति याचिका दायर की थी।
मामला
18 फरवरी 2020 को खुफिया सूचना के आधार पर DRI की टीम ने चांपा स्थित घटोली चौक के पास एक ट्रक (PB-12Q-7045) और एक महिंद्रा स्कॉर्पियो को रोका। तलाशी लेने पर ट्रक के विशेष रूप से निर्मित कक्षों से 157 पैकेटों में लगभग 837.970 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ।
स्कॉर्पियो में अजय पांडेय और रविशंकर मिश्रा सवार थे, जबकि ट्रक को धरम सिंह चला रहा था। ट्रक बलविंदर सिंह के नाम पर पंजीकृत था।
आरोपियों के विरुद्ध धारा 67 NDPS अधिनियम के तहत दिए गए स्वैच्छिक बयानों, मोबाइल कॉल रिकॉर्ड, वाहन दस्तावेजों और बैंक लेनदेन के आधार पर अभियोजन ने साजिश सिद्ध की।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
गुप्त सूचना पत्र पर 65बी सर्टिफिकेट न होने की दलील को कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा:
“अतः, गुप्त सूचना रिपोर्ट Ex.P-1 एक मौलिक शिकायत है और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड नहीं है, इसलिए उसे प्रमाणित करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी का प्रमाणपत्र आवश्यक नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि NDPS अधिनियम की धारा 42 का विधिपूर्ण अनुपालन किया गया था:
“…गुप्त सूचना PW-1 रोशन कुमार गुप्ता को प्राप्त हुई थी और उन्होंने उसी दिन इसे अपने वरिष्ठ अधिकारी को प्रस्तुत किया… अतः यह नहीं कहा जा सकता कि धारा 42 का अनुपालन नहीं हुआ।”
धारा 50 की बहस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“वाहन की तलाशी पर NDPS अधिनियम की धारा 50 लागू नहीं होती और व्यक्ति की तलाशी, वाहन आदि की तलाशी से भिन्न होती है।”
अभियुक्तों की भूमिका
अजय पांडेय ट्रक का पायलट कर रहा था और लगातार धरम सिंह के संपर्क में था। कोर्ट ने उसकी सफाई को अस्वीकार किया।
बलविंदर सिंह के संबंध में कोर्ट ने कहा:
“इस न्यायालय को DRI के अधिवक्ता की इस दलील में बल प्रतीत होता है कि अभियुक्त बलविंदर सिंह, जो उक्त ट्रक का पंजीकृत मालिक है, इस बारे में कोई भी ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य या स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं कर पाया कि किस परिस्थिति में और कैसे उसका वाहन मादक पदार्थों के परिवहन में उपयोग किया गया।”
कोर्ट ने सभी तीन अभियुक्तों के दोषसिद्धि को ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य — विशेषकर आरोपियों के स्वयं के बयानों, कॉल रिकॉर्ड और दस्तावेज़ी साक्ष्य — के आधार पर उचित ठहराया।
सह-आरोपी की रिहाई पर DRI की याचिका खारिज
रविशंकर मिश्रा की रिहाई को चुनौती देने वाली DRI की याचिका को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया:
“हम इस मत पर हैं कि learned Special Judge, Janjgir-Champa ने उपलब्ध समस्त साक्ष्य का विधिवत परीक्षण किया और अभियुक्त रविशंकर मिश्रा को उचित रूप से दोषमुक्त किया।”
निर्णय
कोर्ट ने तीनों अभियुक्तों की अपीलों को खारिज करते हुए उनकी सजा को बरकरार रखा और DRI द्वारा सह-आरोपी की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया।