सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (Employees’ State Insurance Act, 1948) की धारा 2(17) के अंतर्गत ‘प्रिंसिपल एम्प्लॉयर’ (Principal Employer) की परिभाषा कार्यात्मक है, और यदि कोई व्यक्ति प्रतिष्ठान पर नियंत्रण रखता है या मालिक/ऑक्यूपायर का एजेंट होता है, तो उसकी पदवी (designation) अप्रासंगिक हो जाती है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने अजय राज शेट्टी बनाम निदेशक एवं अन्य मामले में अपील खारिज करते हुए यह निर्णय दिया।
मामला संक्षेप में:
अपीलकर्ता अजय राज शेट्टी को ईएसआई एक्ट की धारा 85(i)(b) के तहत दोषी ठहराया गया था, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कर्मचारियों के वेतन से ईएसआई अंशदान की राशि तो काटी थी, लेकिन उसे ईएसआईसी में जमा नहीं किया। कंपनी M/s Electriex (India) Ltd. को बीआईएफआर द्वारा बीमार घोषित किया गया था। वर्ष 2011 में ईएसआईसी अधिकारियों की एक रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक शिकायत दायर की गई, जिसमें पाया गया कि फरवरी 2010 से दिसंबर 2010 के बीच ₹8,26,696 काटे गए थे लेकिन जमा नहीं किए गए। शेट्टी का नाम इस रिपोर्ट में कंपनी के ‘जनरल मैनेजर’ और ‘प्रिंसिपल एम्प्लॉयर’ के रूप में दर्ज था।
न्यायालय द्वारा शेट्टी को छह माह की सश्रम कारावास और ₹5,000 जुर्माने की सजा दी गई, जिसे प्रथम अपीलीय न्यायालय और फिर दिसंबर 2023 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। इसके बाद शेट्टी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

अपीलकर्ता की दलीलें:
शेट्टी की ओर से वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि वह कभी भी जनरल मैनेजर पद पर नियुक्त नहीं थे, बल्कि जुलाई 2009 में केवल तकनीकी समन्वयक (Technical Coordinator) के रूप में जोड़े गए थे। चूंकि कंपनी एक बीमार इकाई थी, इसलिए न तो कोई नियुक्ति पत्र जारी हुआ और न ही उन्हें वेतन दिया गया।
वकील ने यह भी कहा कि जिस ईएसआईसी रिपोर्ट पर अभियोजन पक्ष निर्भर कर रहा है, उसे तैयार करने वाला अधिकारी गवाही के लिए पेश नहीं हुआ, इसलिए उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। साथ ही उन्होंने तर्क दिया कि ईएसआई (जनरल) रेगुलेशन्स की धारा 10-सी के अनुसार, कोई ऐसा फॉर्म 01(A) प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे यह सिद्ध हो कि शेट्टी ‘प्रिंसिपल एम्प्लॉयर’ थे। इसके अलावा, हाईकोर्ट के निर्णय के बाद पूरी बकाया राशि ईएसआईसी को चुका दी गई।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि ईएसआई एक्ट की धारा 2(17) के तहत ‘प्रिंसिपल एम्प्लॉयर’ की परिभाषा केवल पदवी पर आधारित नहीं है बल्कि इसका स्वरूप कार्यात्मक है। कोर्ट ने कहा:
“किसी व्यक्ति की पदवी अप्रासंगिक हो सकती है, यदि वह व्यक्ति मालिक/ऑक्यूपायर का एजेंट हो या संबंधित प्रतिष्ठान की निगरानी और नियंत्रण करता हो।”
कोर्ट ने यह पाया कि उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर शेट्टी ‘प्रिंसिपल एम्प्लॉयर’ की परिभाषा में आते हैं:
“रिकॉर्ड में उपलब्ध सामग्री से हम पाते हैं कि अपीलकर्ता अधिनियम की धारा 2(17) के दायरे में आते हैं, क्योंकि वह ‘मैनेजिंग एजेंट’ हैं।”
पीठ ने यह भी कहा कि भले ही शेट्टी ने जनरल मैनेजर होने से इनकार किया, परंतु उन्होंने वेतन पर्ची, नियुक्ति पत्र या कोई अन्य दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया जिससे यह सिद्ध हो कि उस अवधि में कंपनी की जिम्मेदारी किसी और पर थी।
अपीलकर्ता द्वारा उद्धृत निर्णयों की अस्वीकृति:
अपीलकर्ता ने ESIC बनाम गुरदियाल सिंह और J.K. Industries Ltd. बनाम Chief Inspector of Factories and Boilers जैसे मामलों पर भरोसा किया, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामले भिन्न तथ्यों पर आधारित थे। गुरदियाल सिंह का मामला निदेशकों की जवाबदेही से संबंधित था जहां ऑक्यूपायर मौजूद था, और J.K. Industries मामला फैक्ट्री एक्ट के तहत था, न कि ईएसआई एक्ट के।
निष्कर्ष:
कोर्ट ने छह महीने की सजा को प्रतीकात्मक रूप से ‘कोर्ट उठने तक’ में बदलने से भी इनकार कर दिया। पीठ ने कहा:
“हम इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि सजा की अवधि को केवल एक दिन तक, जब तक अदालत चल रही हो, सीमित कर दिया जाए।”
इस प्रकार, अपील को खारिज कर दिया गया और अपीलकर्ता को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया। पहले दी गई आत्मसमर्पण से छूट भी वापस ले ली गई।
मामला: Ajay Raj Shetty बनाम Director एवं अन्य, आपराधिक अपील संख्या ___ ऑफ 2025 (@ विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 3743 ऑफ 2024), निर्णय दिनांक: 17 अप्रैल 2025.