पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश लोकुर ने उठाया भारत में न्यायाधीशों की कमी और खाली पदों का मुद्दा

भारत की न्याय व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी करते हुए पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश मदन बी. लोकुर ने देश में न्यायाधीशों की भारी कमी को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है, खासकर तब जब विभिन्न अदालतों में पर्याप्त स्वीकृत पद उपलब्ध हैं। उन्होंने यह टिप्पणी 2025 इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) के विमोचन के दौरान की, जो राज्यों की न्याय व्यवस्था की स्थिति का मूल्यांकन करती है।

न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, “आपके पास जितनी खाली जगहें हैं, उतने न्यायाधीश नहीं हैं। फिर न्याय कहां से आएगा?” उन्होंने बताया कि देशभर के जिला न्यायालयों में लगभग 33% पद खाली हैं, जबकि उच्च न्यायालयों में लगभग 21% पद खाली पड़े हैं।

READ ALSO  धारा 482, सीआरपीसी के तहत आरोप तय होने से पहले भी आरोप पत्र रद्द करने के लिए याचिका दायर की जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

उन्होंने याद दिलाया कि कुछ समय पहले उच्च न्यायालयों की स्वीकृत संख्या में बिना किसी स्पष्ट आवश्यकता के 25% की वृद्धि कर दी गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां की स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 48 से बढ़ाकर 60 कर दी गई, जबकि वह पहले भी 48 तक नहीं पहुंची थी।

Video thumbnail

लोकुर ने 1987 की विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें प्रति दस लाख जनसंख्या पर 50 न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी। भारत की वर्तमान जनसंख्या 1.4 अरब से अधिक है, इस लिहाज से 70,000 न्यायाधीशों की आवश्यकता है, जबकि वास्तविक संख्या मात्र 21,000 है, और स्वीकृत संख्या भी केवल 25,000 तक सीमित है।

उन्होंने न्यायिक कर्मचारियों की भारी कमी को भी रेखांकित किया और कहा कि मौजूदा न्यायिक प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए करीब पांच लाख कर्मचारियों की जरूरत है

READ ALSO  विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति को इससे जुड़े कानूनी परिणामों की पूरी जानकारी होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

ग्राम न्यायालयों की विफलता पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 2009 में शुरू की गई इस योजना के तहत देशभर में हजारों न्यायालय बनने थे, लेकिन अब तक केवल 40-50 ही बन पाए हैं, जो ग्रामीण स्तर पर न्याय देने की मूल भावना को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles