योग्यता मानदंडों का कार्यों, कर्तव्यों और अपेक्षित क्षमताओं से तार्किक रूप से संबंधित होना आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी पद के लिए निर्धारित योग्यता मानदंडों का उस पद के कार्यों, कर्तव्यों और अपेक्षित क्षमताओं से तार्किक और यथोचित संबंध होना चाहिए। अदालत ने छत्तीसगढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य यांत्रिकी (गैर-राजपत्रित) भर्ती नियम, 2016 के नियम 8(II), अनुसूची-III, स्तंभ (5), क्रमांक 1 को असंवैधानिक और अधिकार क्षेत्र से परे घोषित करते हुए उसे रद्द कर दिया। यह नियम उप अभियंता (सिविल/मैकेनिकल/इलेक्ट्रिकल) के पद हेतु केवल डिप्लोमा धारकों को पात्र मानता था और अभियंता डिग्री धारकों को बाहर करता था।

मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति श्री विभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय दो याचिकाओं (डब्ल्यूपीएस संख्या 1983/2025 और 2012/2025) पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जो उन अभियंता स्नातकों द्वारा दायर की गई थीं जिन्हें भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने से रोका गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता अभियंता स्नातक हैं जो लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा 27 अप्रैल 2025 को आयोजित होने वाली उप अभियंता भर्ती परीक्षा में भाग लेना चाहते थे। उनका तर्क था कि नियमों में केवल तीन वर्षीय डिप्लोमा को आवश्यक योग्यता बताया गया है, जिससे उच्च शिक्षित अभियंता डिग्री धारक स्वतः बाहर हो गए हैं।

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उन्होंने तर्क दिया कि यह प्रावधान मनमाना, भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि पूर्ववर्ती 2012 के नियमों में न्यूनतम योग्यता का उल्लेख किया गया था, जिससे डिग्री धारक भी पात्र होते थे। इसके अतिरिक्त, लोक निर्माण विभाग (PWD) और CSPDCL जैसी अन्य राज्य एजेंसियों में उप अभियंता पद हेतु डिप्लोमा और डिग्री दोनों धारकों को आवेदन की अनुमति दी गई है।

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याचिकाकर्ताओं ने अपने पक्ष में पुनीत शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड [(2021) 16 SCC 340] मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने डिग्री धारकों को भी आवेदन की अनुमति देने का निर्देश दिया था।

राज्य का पक्ष

राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह नियम 1979 से चला आ रहा है और 2012 तथा 2016 के नियमों में भी कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि 100% पदों में से 95% पद प्रत्यक्ष भर्ती से भरे जाने हैं और 5% पद विभागीय पदोन्नति से। इस 5% कोटे में डिप्लोमा या डिग्री धारक दोनों पात्र हैं, लेकिन प्रत्यक्ष भर्ती में केवल डिप्लोमा धारकों को ही पात्रता दी गई है।

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राज्य ने अपने तर्क के समर्थन में अंकिता ठाकुर बनाम एच.पी. स्टाफ सेलेक्शन कमिशन [2023 SCC Online SC 1472] और दुर्गावती बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (WPS 4292/2019) जैसे मामलों का हवाला दिया।

सीजी व्यापम की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कहा कि वह केवल भर्ती एजेंसी है और विभाग से प्राप्त नियमों के अनुसार ही परीक्षा आयोजित करता है।

न्यायालय का विश्लेषण

कोर्ट ने माना कि डिग्री धारकों को बाहर करना न केवल अनुचित है बल्कि अधिक योग्य और तकनीकी रूप से दक्ष अभ्यर्थियों को दूर करके उद्देश्य के विपरीत भी है। अदालत ने इसे अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन माना।

कोर्ट ने शायरा बानो बनाम भारत संघ [(2017) 9 SCC 1] के निर्णय का हवाला देते हुए कहा:

“यदि कोई अधिनियम मनमाना, अविवेकपूर्ण या अपर्याप्त निर्णायक सिद्धांतों के बिना है, तो वह अनुच्छेद 14 के अंतर्गत अमान्य हो सकता है।”

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कोर्ट ने यह भी कहा कि:

“किसी भी पात्रता मानदंड को उस पद की कार्यात्मक आवश्यकताओं, कार्यों की प्रकृति और आवश्यक क्षमताओं से तार्किक संबंध होना चाहिए।”

न्यायालय का निर्णय

कोर्ट ने नियम 8(II), अनुसूची-III, स्तंभ (5), क्रमांक 1 को अवैध, अधिकार क्षेत्र से बाहर और असंवैधानिक घोषित किया। इसके परिणामस्वरूप, 15 जनवरी 2025 को जारी विज्ञापन में आवश्यक बदलाव करते हुए डिग्री धारकों को भी भर्ती प्रक्रिया में सम्मिलित होने की अनुमति दी गई।

अंतरिम आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं सहित अन्य डिग्री धारक अभ्यर्थियों को आवेदन करने की अनुमति दी गई थी। अब कोर्ट ने निर्देश दिया है कि चयन प्रक्रिया आगे जारी रहे और डिग्री धारकों सहित सभी पात्र उम्मीदवारों को नियमानुसार परखा जाए।

अंततः दोनों याचिकाएं स्वीकार कर ली गईं।

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