भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि यदि कानूनी आवश्यकताओं का “पर्याप्त अनुपालन” हो तो चुनाव याचिका को उस सीमा पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ द्वारा दिया गया यह फैसला किमनियो हाओकिप हंगशिंग बनाम केन रायखान एवं अन्य के मामले में आया, जिसने चुनाव कानून के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता किमनियो हाओकिप हंगशिंग मणिपुर के 46-सैकुल विधानसभा क्षेत्र से विधान सभा के सदस्य (एमएलए) हैं। हंगशिंग 2022 में मणिपुर विधानसभा के 12वें आम चुनाव के दौरान चुने गए थे। प्रतिवादी केन रायखान, जिन्होंने चुनाव भी लड़ा था, ने मणिपुर हाईकोर्ट में चुनाव याचिका दायर करके परिणामों को चुनौती दी। चुनौती के लिए प्राथमिक आधार अपीलकर्ता द्वारा अपने नामांकन पत्रों में संपत्ति का खुलासा न करने तथा भ्रष्ट आचरण में लिप्त होने के आरोप थे।
शामिल कानूनी मुद्दे
हंगशिंग ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश VII नियम 11 के साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपीए) की धारा 86 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें इस आधार पर चुनाव याचिका को खारिज करने की मांग की गई कि इसमें कार्रवाई के किसी कारण का खुलासा नहीं किया गया है तथा आरपीए की धारा 83 में उल्लिखित वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहा है। मणिपुर हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उनके आवेदन को खारिज कर दिया कि उठाए गए मुद्दों के लिए साक्ष्य की जांच करने के लिए विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है, जिसके कारण हंगशिंग ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुख्य टिप्पणियां तथा निर्णय
अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव याचिकाओं के संदर्भ में “सख्त अनुपालन” की तुलना में “पर्याप्त अनुपालन” के महत्व पर जोर देते हुए हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा। न्यायालय ने कहा, “चुनाव याचिका को उस सीमा पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए, जहां प्रावधानों का पर्याप्त अनुपालन हो,” यह दर्शाता है कि भले ही प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं में मामूली खामियां हों, लेकिन यदि याचिका मूल रूप से आवश्यक कानूनी मानकों का पालन करती है, तो उन्हें पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाना चाहिए।
न्यायालय ने आगे कहा कि मामले ने हंगशिंग द्वारा कथित रूप से संपत्ति छिपाने और उनके नामांकन पत्रों को अनुचित तरीके से स्वीकार किए जाने के संबंध में एक “परीक्षण योग्य मुद्दा” उठाया। इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि इन मुद्दों की गहन जांच की आवश्यकता है और उचित सुनवाई के बिना इन्हें सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कई मिसालों का हवाला दिया, जिसमें जी.एम. सिद्धेश्वर बनाम प्रसन्ना कुमार (2013) 4 एससीसी 776 का मामला भी शामिल है, जहां यह स्थापित किया गया था कि यदि वैधानिक आवश्यकताओं का पर्याप्त अनुपालन हो, तो चुनाव याचिका को केवल तकनीकी कमियों के आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए। इसी तरह, मणिपुर के थंगजाम अरुणकुमार बनाम युमखम एराबोट सिंह, 2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 1058 के हालिया मामले का हवाला दिया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने पर्याप्त अनुपालन के आधार पर चुनाव याचिका में आदेश VII नियम 11 आवेदन को खारिज करने के हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
निर्णय से उद्धरण
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने पीठ के लिए लिखते हुए कहा: “यहां कानून की स्थापित स्थिति यह है कि चुनाव याचिका को उस सीमा पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए जहां प्रावधानों का पर्याप्त अनुपालन हो।” उन्होंने आगे कहा, “कानून की आवश्यकताएं निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना है, और कोई भी विचलन जो याचिका के मूल को प्रभावित नहीं करता है, उसे शुरू में ही खारिज नहीं किया जाना चाहिए।”
केस का शीर्षक: किमनेओ हाओकिप हंगशिंग बनाम केन रायखान और अन्य