प्रवर्तन निदेशालय ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उस ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी, जिसमें नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित अन्य के खिलाफ दाखिल चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया गया था। यह याचिका अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की संभावना है।
ED ने ट्रायल कोर्ट के 16 दिसंबर के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें कहा गया था कि एजेंसी की शिकायत पर संज्ञान लेना “कानूनन स्वीकार्य नहीं” है, क्योंकि यह किसी प्राथमिकी (FIR) पर आधारित नहीं है। ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत जांच और उसके बाद दाखिल अभियोजन शिकायत, अनुसूचित अपराध से जुड़ी FIR के अभाव में कायम नहीं रह सकती।
अदालत के अनुसार, ED की जांच एक निजी शिकायत से शुरू हुई थी, न कि FIR से। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब कानून के प्रश्न पर ही संज्ञान से इनकार किया जा रहा है, तो आरोपों के गुण-दोष पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है।
ट्रायल कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा की गई शिकायत और 2014 में जारी समन आदेश के बावजूद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने अब तक कथित अनुसूचित अपराध के संबंध में कोई FIR दर्ज नहीं की है। इसके बावजूद, ED ने 30 जून 2021 को धनशोधन से जुड़ा ECIR दर्ज कर लिया, जबकि उस समय किसी भी जांच एजेंसी के पास कोई FIR मौजूद नहीं थी।
नेशनल हेराल्ड मामले में ED ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के अलावा दिवंगत कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडिस, सुमन दुबे, सैम पित्रोदा तथा निजी कंपनी यंग इंडियन पर आपराधिक साजिश और धनशोधन के आरोप लगाए हैं। एजेंसी का आरोप है कि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL), जो नेशनल हेराल्ड अखबार प्रकाशित करती है, की लगभग 2,000 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्तियां कथित रूप से हड़पी गईं।
ED का यह भी दावा है कि यंग इंडियन में गांधी परिवार की 76 प्रतिशत हिस्सेदारी थी और इस कंपनी ने 90 करोड़ रुपये के ऋण के बदले AJL की संपत्तियों को “धोखाधड़ी से” अपने कब्जे में लिया। अब दिल्ली हाईकोर्ट इस अहम कानूनी सवाल पर विचार करेगा कि अनुसूचित अपराध से जुड़ी FIR के बिना PMLA के तहत ED की कार्यवाही और अभियोजन वैध है या नहीं।

