छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि जब तक यह प्रमाणित नहीं हो जाता कि कोई मूल दस्तावेज़ खो गया है, नष्ट हो गया है या उसे जानबूझकर रोका गया है, तब तक उस दस्तावेज़ के संबंध में गौण साक्ष्य (secondary evidence) स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने 20.06.2022 को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसके तहत एक कथित ‘इकरारनामा’ (समझौता पत्र) की फोटोकॉपी को अभियोजन पक्ष की गवाह (पीड़िता) की जिरह के दौरान दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार कर लिया गया और उसे एग्ज़िबिट P/19 के रूप में चिह्नित कर लिया गया।
यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और 417 के तहत दर्ज एक आपराधिक मुकदमे से संबंधित है। याचिकाकर्ता का तर्क था कि उक्त दस्तावेज़ न तो जांच के दौरान प्रस्तुत किया गया और न ही पीड़िता द्वारा अपने बयान (धारा 161 और 164 CrPC के तहत) में इसका उल्लेख किया गया। इसे पहली बार जिरह के दौरान पेश किया गया, जिसे बिना किसी नोटिस या आपत्ति के ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री रवींद्र शर्मा ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा बिना नोटिस दिए एक फोटोकॉपी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 66 का गंभीर उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि मूल दस्तावेज़ कभी प्रस्तुत नहीं किया गया और अचानक जिरह के दौरान इसे पेश करने से याचिकाकर्ता को गंभीर नुकसान हो सकता है।
वहीं, प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से अधिवक्ता श्री विवेक भक्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश का समर्थन किया, लेकिन जब पीठ ने पूछा कि क्या मूल दस्तावेज़ पीड़िता के पास है, तो उन्होंने इनकार किया और कहा कि वह दस्तावेज़ याचिकाकर्ता के पास है।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 और 66 का उल्लेख करते हुए कहा कि गौण साक्ष्य केवल उन्हीं परिस्थितियों में स्वीकार किया जा सकता है, जब यह सिद्ध हो कि मूल दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है, खो गया है, नष्ट हो गया है या जानबूझकर प्रस्तुत नहीं किया गया है, और इसके लिए विधिक नोटिस देना आवश्यक है।
पीठ ने Ashok Dulichand v. Madahavlal Dube और Rakesh Mohindra v. Anita Beri के सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“जब तक यह सिद्ध नहीं होता कि मूल दस्तावेज़ खो गया है, नष्ट हो गया है या संबंधित पक्ष द्वारा जानबूझकर रोका गया है, तब तक उसके संबंध में गौण साक्ष्य स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जिस दस्तावेज़ (Ex-P/19) को स्वीकार किया गया वह न तो चार्जशीट का हिस्सा था, न ही इसकी जानकारी जांच के दौरान दी गई, और न ही पीड़िता ने इस बाबत कोई औपचारिक आवेदन दिया था। ऐसे में बिना मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत किए, उसकी फोटोकॉपी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना विधि विरुद्ध है।
निर्णय
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा 20.06.2022 को पारित उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें इकरारनामे की फोटोकॉपी को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया था। न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह मुकदमे की सुनवाई शीघ्रता से पूरी करे।