छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की एक पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई मृत्युपूर्व कथन (Dying Declaration) विश्वसनीय और स्वेच्छापूर्वक दिया गया हो तथा न्यायालय को उस पर पूर्ण विश्वास हो, तो वह अकेले ही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त हो सकता है, भले ही कोई अन्य समर्थनकारी साक्ष्य न हो। कोर्ट ने इसी सिद्धांत के आधार पर धनेश्वर यादव और उसकी माँ मंगली बाई को उनकी पत्नी राधाबाई की हत्या के मामले में दोषी ठहराने वाले निर्णय और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा।
यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने क्रिमिनल अपील संख्या 1281/2024 में पारित किया।
पृष्ठभूमि
आरोपियों धनेश्वर यादव और मंगली बाई को सत्र न्यायाधीश, सक्ती, जिला जांजगीर-चांपा ने सत्र प्रकरण संख्या 27/2022 में आईपीसी की धारा 302 सहपठित धारा 34 के तहत दोषी ठहराया था और आजीवन कारावास तथा ₹1,000 के अर्थदंड की सजा सुनाई थी। यह सजा मुख्य रूप से मृतका राधाबाई द्वारा दिए गए मृत्युपूर्व कथन के आधार पर दी गई थी, जिनकी जलाकर हत्या की गई थी।

प्रकरण के अनुसार, 1 सितंबर 2021 को आरोपियों ने राधाबाई से मायके से पैसे लाने के लिए कहकर उसके ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी। गंभीर रूप से झुलसने के बाद वह 6 सितंबर 2021 को उपचार के दौरान चल बसीं। इस दौरान उनका मृत्युपूर्व कथन कार्यपालक दंडाधिकारी द्वारा दर्ज किया गया था।
अपीलकर्ताओं की दलीलें
अपीलकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे प्रमाणित करने में असफल रहा है। उन्होंने कहा कि मृत्युपूर्व कथन अविश्वसनीय है, प्राथमिकी में तीन महीने से अधिक की देरी हुई, और कई महत्वपूर्ण गवाह शत्रुतापूर्ण हो गए। बचाव पक्ष का यह भी तर्क था कि यह आत्महत्या का मामला था, क्योंकि मृतका को मायके जाने से रोका गया था।
न्यायालय का विश्लेषण
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा के नेतृत्व वाली पीठ ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट और डॉ. शिवनारायण मांझी (PW-14) की चिकित्सकीय गवाही के आधार पर मृतका की मृत्यु को हत्या करार दिया। न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 32(1) के अंतर्गत मृत्युपूर्व कथन की कानूनी मान्यता को पुनः स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें शामिल हैं:
- शरद बिर्धिचंद सरदा बनाम महाराष्ट्र राज्य, (1984) 4 SCC 116
- पुरुषोत्तम चोपड़ा बनाम दिल्ली राज्य, (2020) 11 SCC 489
- लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र राज्य, (2002) 6 SCC 710
न्यायालय ने कहा:
“जब कोई मृत्युपूर्व कथन प्रामाणिक प्रतीत होता है और न्यायालय का विश्वास अर्जित करता है, तो उसे दोषसिद्धि का आधार बनाया जा सकता है, भले ही उसके समर्थन में कोई अन्य साक्ष्य न हो।”
मृतका राधाबाई का मृत्युपूर्व कथन (प्रद.पी-17), कार्यपालक दंडाधिकारी उमंग जैन (PW-12) द्वारा दर्ज किया गया था, जिसे डॉ. अजीम आलम (PW-11) ने कथन के पूर्व प्रमाणित किया था कि पीड़िता कथन देने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से सक्षम थी। पीठ ने पाया कि यह कथन स्वतंत्र, स्वेच्छा से दिया गया था और इसमें मृतका ने स्पष्ट रूप से अपने पति धनेश्वर यादव और सास मंगली बाई का नाम लिया था।
बचाव पक्ष की ओर से लाए गए कुछ ग्रामीण गवाहों ने आत्महत्या की बात कही, किन्तु न्यायालय ने उन्हें अविश्वसनीय और अभियोजन के चिकित्सकीय व फोरेंसिक साक्ष्यों से असंगत माना। घटनास्थल से मिट्टी के तेल की गंध वाली स्प्राइट की बोतल और माचिस की डिब्बी बरामद हुई थी, जिससे अभियोजन का पक्ष और मजबूत हुआ।
निर्णय
पीठ ने अपील को खारिज करते हुए सत्र न्यायालय के निर्णय और सजा को सही ठहराया।
“अदालत को यह विश्वास है कि मृतका राधाबाई द्वारा दिया गया मृत्युपूर्व कथन (प्रद.पी-17) सत्य और स्वैच्छिक है,” न्यायालय ने कहा।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि दोनों अपीलकर्ता अपनी शेष सजा जेल में ही पूरी करें और उन्हें सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने के अधिकार के बारे में अवगत कराया जाए।
मामले का शीर्षक:धनेश्वर यादव एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
मामला संख्या: क्रिमिनल अपील नं. 1281/2024