9 अप्रैल 2025 को दिए गए एक अहम निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दहेज से संबंधित आपराधिक मामले में आरोपी के बरी हो जाने से दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 6(3) के तहत दहेज सामग्री की वापसी पर कोई रोक नहीं लगती। यह निर्णय निर्मला चौहान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, आपराधिक अपील संख्या ___ /2025 (SLP (Crl.) No. 7899/2024 से उत्पन्न) में न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ द्वारा सुनाया गया।
मामला पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता निर्मला चौहान मृतका की माता हैं। उन्होंने अपने दामाद के परिवार से दहेज सामग्री की वापसी के लिए दहेज निषेध अधिनियम की धारा 6(3) के तहत आवेदन किया था। इस आवेदन को 31 अक्टूबर 2023 को गाज़ियाबाद के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने शिकायत संख्या 2336/2022 में यह कहते हुए खारिज कर दिया कि संबंधित आपराधिक मामले में आरोपी बरी हो चुके हैं।
इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी 16 अप्रैल 2024 को क्रिमिनल रिवीजन संख्या 404/2024 में मजिस्ट्रेट के आदेश को सही ठहराते हुए पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।

पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि आपराधिक मुकदमे में आरोपी के बरी होने से धारा 6(3) के तहत दायर आवेदन की वैधता पर कोई असर नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने यह नहीं देखा कि आवेदन विधिसंगत था या नहीं और उसे संक्षेप में खारिज किया जाना उचित था या नहीं।
वहीं, प्रतिवादियों की ओर से प्रस्तुत वकील ने दलील दी कि आपराधिक मुकदमे में दहेज मांग साबित नहीं हुई, अतः आवेदन विचारणीय नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि आवेदन सीमाबद्धता (limitation) के दायरे से बाहर था।
सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने मजिस्ट्रेट और हाईकोर्ट के आदेशों की समीक्षा करते हुए कहा:
“ना तो मजिस्ट्रेट और ना ही उच्च न्यायालय ने शिकायत को सीमाबद्धता के आधार पर खारिज किया है।”
इसलिए कोर्ट ने सीमा-सम्बंधी मुद्दे पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने मुख्य आधार पर कहा:
“आपराधिक मुकदमे में आरोपी के बरी हो जाने से दहेज सामग्री की वापसी के लिए दायर आवेदन को खारिज करने का आधार नहीं बनता। यदि दहेज सामग्री बिना मांग के दी गई हो, तब भी वह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार लौटाई जा सकती है, विशेषकर जब मृतका की कोई संतान न हो और उसकी मां प्राकृतिक उत्तराधिकारी हो।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका खारिज करते समय सभी जरूरी पहलुओं पर विचार नहीं किया। अतः कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया और क्रिमिनल रिवीजन संख्या 404/2024 को विधि के अनुसार नए सिरे से सुनवाई के लिए पुनर्स्थापित कर दिया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“हमारे इस आदेश में की गई कोई भी टिप्पणी उच्च न्यायालय की स्वतंत्र राय को प्रभावित नहीं करेगी।”
अपील स्वीकार की गई और लंबित सभी आवेदन समाप्त कर दिए गए।